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________________ (२५६) ग्रह के विमानों को उस प्रकार के आकृति वाले देवता प्रत्येक दिशा में दो दो हजार, कुल मिलाकर आठ हजार देवता वहन करते हैं । (८८) उद्वहन्ति च नक्षत्र विमानांस्ताद्दशाः सुराः । स्थिताः प्रत्येशमेकैकं, सहस्र प्रतिमाः सदा ॥६॥ नक्षत्रों के विमानों को भी उसी प्रकार के आकृति वाले प्रत्येक दिशा में एक-एक हजार देवता वहन करते हैं, इस तरह कुल मिलाकर चार दिशा में चार हजार देवता वहन करते हैं । (८६) समुद्वहन्ति प्रत्याशं पन्चपन्चशताः स्थिताः । तारा काणां विमानानि, सिंहद्याकृतयोऽमराः ॥६०॥ प्रत्येक दिशा में सिंहादि आकृति वाले पांच सौ, पांच सौ देवता तारा विमानों को वहन करते हैं । चारों दिशा में कुल दो हजार देवता होते हैं । (६०) सर्वेभ्यो मन्दगतयः शशाङ्गः शीघ्रगास्ततः । तिग्मत्विषो ग्रहास्तेभ्यः ख्याताः सत्वरगामिनः ॥६१॥ विशेषस्त्वेष तत्रापि, सर्वाल्पगतयो 'बुधाः । तेभ्यः शुक्राः शीघ्रतरास्तेभ्योऽपि क्षितिसूनवः ॥६२॥ प्रकृष्टगतयस्तेभ्यः, सुराचार्यास्ततोऽपि हि । ख्याताः शनैश्चराः क्षिप्रगत्तयस्तत्व वेदिभिः ॥६३॥ तेभ्य स्त्वरितयायीनि, नक्षत्राणि ततोऽपि च । तारकाः क्षिप्रगतयो, निर्दिष्टाः स्पष्ट दृष्टिभिः ॥६४॥ सर्वेभ्योऽप्येवमल्पिष्ठ गतयोऽमृतमानवः । सर्वेभ्यः क्षिप्रगतय स्तारकाः परिकीर्तिताः ॥६५॥ ज्योतिष्क में सबसे मंदगति वाला चन्द्र का विमान है, उससे शीघ्र गति वाला सूर्य का विमान है । इससे ग्रह के विमान तेज गति वाला है । उसमें विशेष यह है कि ग्रहों में बुध सर्व से अल्पगति वाला है उससे शीघ्र गति शुक्र की है, उससे शीघ्रगति मंगल की है और इससे शीघ्रगति बृहस्पति की है। और इससे शीघ्रगति शैनश्चर की तत्वज्ञानियों ने कहा है । इससे नक्षत्र के विमानों की गति
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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