SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२५७) है अनेक तरह की गति में विशारद है । सुवर्ण सद्दश जीभ और तालुवाले हैं, वज्र को भी जीते ऐसे कठोर खुर वाले हे, अनेक दांत स्फटिक समान उज्जवल है गंभीर और भेदन करने वाली गर्जना है, सोने के आभूषण तथा रत्न की धुंघरु की माला उन्होंने धारण किए है ऐसे चार हजार बृषभ (बैलरूप) देवता होते हैं । (७२-७६) उदीच्यां सुप्रभाः श्वेताः, युवान: पीवरोन्नताः । मल्लिका पुष्प शुभ्राक्षाः, साक्षात्तााग्रजा इव ॥७७॥ अभ्यस्तनानागमना, जवनाः पवना इव । धावनोल्लङ्घनक्रीडाकू ईनादिजितश्रमाः ॥७८॥ लक्षणोपेतसर्वाङ्गाः शस्तविस्तीर्णके सराः । व्यज्जयन्तश्चलत्पुच्छंचामरेणाश्वराजताम् ॥७६ ॥ तपनीयखुराजिह्वातालवः स्थासकादिभिः । रम्या रत्नमयैर्वकललाटादि विभूषणैः ॥१०॥ हरिमेलक गुच्छेन, मूर्ध्निनिर्मित शेखराः । हर्षहेषितहेलाभिः, पूरयन्तोऽभितोऽम्बरम् ॥८१॥ चत्वार्येव सहस्राणि, हयरूषभृतः सुराः । सुधांशूनां विमानानि, वहन्ति मुदिताः सदाः ॥८२॥ षडभिः कुलकं ॥ चन्द्र के विमान की उत्तर दिशा की ओर चार हजार अश्व रूप में धारण करते देवता विमान को वहन करते हैं । जो अत्यंत प्रभा युक्त है, श्वेत वर्णनीय है, युवान देह वाले हैं, पुष्ट और उन्नत हैं मल्लिका (एक प्रकार की चमेली) के पुष्प के समान शुभ आंखे वाले, साक्षात् मानो गरूड के बड़े भाई समान विशालकाय और बलिष्ठ है । अलग-अलग प्रकार की गति के अभ्यास वाले है, तथा पवन जैसी वेग गति वाले है, दौड़ना कूदना उल्लंघन करना-क्रीड़ा करना आदि में श्रम को जीते गये हैं, उनके सर्व अंग लक्षणों से युक्त है, उनकी केसर प्रशस्त और चौड़ी है, चलते पूच्छ रूपी चमर से घोड़े में अपने राजरूप-अग्निमता-विशिष्टता को दिखाता है, उनका खुर, जीभ और तालु स्वर्णमय है, रत्नमय अलंकार और मुख के ललाट के आभूषण द्वारा वे रमणीय है, मस्तक में रही कलगी को गुच्छा से मानो
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy