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(२५५) क्षौद्र पिण्ड पिंग लाक्षाः पूर्णीरूस्कन्धबन्धुरा । सल्लक्षण स्वच्छ सटाः पुच्छा तुच्छ श्रियोद्भटाः ॥६३॥ तपनीयमयप्रौढचित्रयोकत्रक यन्त्रिताः । सलीलगतयः स्फारबलवीर्यपराक मः ॥६४॥ सिंहनादैः कृताहादैः पूरयन्तो दिशो दश ।
चतःसहस्रप्रमिता, वहन्ति सिंहनिर्जराः ॥६५॥ पन्चभि कुलकं ।।
सुभग अग्रभाग वाले, गाय का दूध, फेन, चन्द्र, दही शंख आदि पदार्थों के समान अत्यन्त उज्जवल, तीक्ष्ण-गोलाकार स्थिर स्थापित दाढाओं से अंकुरित मुख वाले, रक्त कमल दल के आकार वाली जीभ वाले, लालित्य-समर तालु प्रदेश वाले, मधु का पिंड, समान पीली आंखों वाले, पूर्ण पुष्ट स्कंध से शोभते, सुलक्षणोपेत स्वच्छ केशरावाले दीर्घ पूंछ की शोभा से युक्त, सुवर्णमय विशिष्ट जुडा हुआ, लीला सहित गति करने वाला उछलते बलवीर्य-पराक्रम वाले, आनंद दायक सिंहनाद द्वारा दसों दिशा को भरने वाले सिंह रूपी चार हजार देवता पूर्व दिशा में चन्द्र विमान का वहन (उठाने का) कार्य कर रहे हैं । (६१-६५)
दक्षिणस्यां स्थूल वज्रमय कुम्भस्थलोद्भुराः । स्वैरं कुण्डलितो द्दण्ड शुण्डा मण्डल मण्डिताः ॥६६॥ तपनीयमयश्रोत्रान्चलचान्चल्यचन्चवः । सुवर्णखचितप्रान्तसद्दन्तमुशलद्वयाः ॥६७॥ भूरिसिन्दूरशिरसश्चलच्चामरचाखः । सुवर्णकीङ्किणीकीर्णमणिग्रैवेयकोग्रभाः ॥१८॥ रूप्यरज्जुलसंघण्टायुगलध्वनिमन्जुलाः । वैडूर्यदण्डोद्दण्डांशु तीववज़मयाङ्कुशाः ॥६६॥ पुनः पुनः परावृत्तपुच्छाः पुष्टा महोन्नताः । कूर्माकारक्रमा वल्गुगतयः स्फारविक्रमाः ॥७०॥ विमानानि शशाङ्कानां वहन्ति गजनिर्जराः । धनवन्मन्जु गर्जन्तश्चतुःसहस्रसम्मिताः ॥७१॥ षड्भिः कुलकं ।।।