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तथा : विशेषणवती कारा: - "अद्धक विट्ठा गारा उदयत्थमणम्मिकहनदीसंति। ससि सूराण विमाणाई तिरिय खेत्तट्ठियाइं च ॥१॥"
विशेषणवती में भी प्रश्न किया है कि - तिर्यग् क्षेत्र में रहे चन्द्र सूर्य के विमान उदय और अस्त समय अर्ध कपित्थ आकार वाला क्यों नहीं दिखता ? (१)
उत्ताणद्धक विट्ठागारं पीठं तदवरि पासाओ।
वट्ठालेखेण तओ समवढें दूरभावाओ ॥२॥
इसका उत्तर देते हैं - खड़ा अर्ध कपित्थ के आकार वाली पीठ होती है. उस के ऊपर अर्ध गोलाकार प्रासाद होते है, इसके कारण दूर से गोलाकार दिखता है । (२)
विशेषश्चात्र प्रज्ञापना सूत्रे - 'जे य गहा जोइंसम्मि चारं चरंति केऊ अगतिरतिया अट्ठावीस तिविहा णक्खत्तदेव गणा (ते) णाणा संढाण संढियाय' ___श्री प्रज्ञापन सूत्र में विशेष रूप में कहा है कि - ज्योतिष्क चक्र के अन्दर जो ग्रह करते है, वे तीन प्रकार के होते हैं । १- केतु २- स्थिर ३- अट्ठाईस नक्षत्र ये तीनों प्रकार के नक्षत्र रूपी देवगण अलग-अलग संस्थान में रहते हैं।
जीवाभिगम वृत्तावपि - तथा ये ग्रहा ज्योतिश्चकं चार चरन्ति केतवो ये च बाह्य द्वीप समुद्रेष्वगतिरतिका ये चाष्टष विंशतिदेव नक्षत्र गणास्ते सर्वेऽपि नाना विध संस्थान संस्थिताः, च शब्दात्ततपनीय वर्णाश्च ॥
श्री जीवाभिगम सूत्र की वृत्ति में कहा है कि - जो ग्रह ज्योतिष चक्र में भ्रमण करता है, उसमें जो केतु, बाह्य द्वीप समुद्र में रहे स्थिर ग्रह तथा अट्ठाईस देव नक्षत्र गण है वे सभी अलग-अलग संस्थानों में रहते है और 'च' शब्द सर्व तप्त सुवर्ण के वर्ण वाला है ।'
एकस्य योजनस्यांशानेकषष्टिसमुद्भवान् । षट्पन्चाशतमिन्दोः स्याद्विमानं विस्तृतायतम् ॥४०॥