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संग्रहणी की मूलगाथा में कहा है - तारा, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, बुध, शुक्र, गरु, मंगल, शनैश्चर अनुक्रम से समतल भूमि से ७६०, १०,८०, ४.४, ३, ३, ३ और तीन योजन के अन्तर में रहे है । (१६)
जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तावपि :श तानि सप्त गत्वोद्धर्व, योजनानां भुवस्तलात् । नवतिं च स्थितास्ताराः सर्वाधस्तान्नभस्तले ॥२०॥ तारकापटलाद्गत्वा, योजनानि दशोपरि । सूराणां पटलं तस्मादशीतिं शीतरोचिषाम् ॥२१॥ चत्वारि तु ततो गत्वा, नक्षत्र पटलं स्थितम् । गत्वा ततोऽपि चत्वारि, बुधानां पटलं भवेत् ॥२२॥ शुक्राणां च गुरुणां च, भौमानां मन्द संज़िनाम् । त्रीणि त्रीणि च गत्वोद्धर्वं क्रमेण पंटलं स्थितम् ॥२३॥ इति ।
श्री जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की वृत्ति में भी कहा है कि - 'समतल भूमि से सात सौ नब्बे योजन ऊंचे जाने के बाद आकाश में नीचे के विभाग में तारा मंडल आता है, तारा पटल से दस योजन में सूर्य का मंडल आता है उसके बाद अस्सी योजन में चन्द्र मंडल आता है वहां से चार योजन नक्षत्र मंडल आता है, वहां से चार योजन पर बुध का मंडल आता है, वहां से क्रमशः तीन योजन पर शुक्र तीन योजन में गुरु, तीन योजन पर मंगल और तीन योजन पर शनैश्वर का मंडल आता है ।' (२०-२३)
गन्ध हस्ती त्वाह - "सूर्याणामधस्तान्मंगलाश्चरन्ती" इति ॥
श्री आचार्य सिद्धसेन दिवाकर सूरीश्वर जी रचित टीका गन्ध हस्ती में कहा है कि - 'सूर्य की नीचे मंगल चलता है'।
हरिभद्र सूरिः पुनरध स्तने भरण्यादिकं नक्षत्रमुपरितने च स्वात्यादिक मस्तीत्याह तथा च तट्टीका - "सत्तहिं नउएहिं उप्पिं हेट्ठिल्लो होइ तलोत्ति भरणि माइ जोइसपरो भवतीत्यर्थः तथोपरितलः स्वत्युत्तरो ज्योतिषां प्रतर इति तत्वं पुनः केवलिनो विदन्तीति संग्रहणी वृत्तौ ।"