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________________ (२४५) नीचे के तारा मंडल से नब्बे योजन ऊपर चन्द्र मंडल है और उससे बीस योजन ऊपर, ऊपर का तारा मंडल है । (१३) नवभिर्यो जनशतैः, समक्षितेरधस्तनात् । तारावृन्दाद्दशोपेतशतेन च भवेदिदम् ॥१४॥ . . ये ऊंचे तारा मण्डल समतल भूमि से नौ सौ योजन है और नीचे तारा मंडल से एक सौ दस योजन में है । (१४) अत्र संग्रहणीवृत्यादावयं विशेष :चत्वारि योजनानीन्दोर्गत्वा नक्षत्रमण्डलम् । चतुर्भियौजनैस्तस्माद बुधानां पटल स्थितम् ॥१५॥ त्रिभिश्च योजनैः शुक्र मण्डलं बुध मण्डलात् । योजनैस्त्रिभिरेतस्मात् स्यांद्वाचस्पति मण्डलम् ॥१६॥ गुरुणां पटलाद्भौभ मण्डलं योजनै स्त्रिभिः । त्रिभिश्च योजनै मात्, स्याच्छनैश्वर मण्डलम् ॥१७॥ . इस विषय में संग्रहणी को वृत्ति. आदि में इसके अनुसार विशेषता है :चन्द्र से चार योजन दूर नक्षत्र मंडल है, उससे चार योजन दूर बुध का मंडल है, उससे तीन योजन पर शुक्र मंडल है, उससे तीन योजन दूर में गुरु मंडल है । इस गुरु मंडल से तीन योजन में मंगल मंडल है और इससे तीन योजन में शनि का मंडलं है । (१५-१७) . विंशत्यायोजनैरेतत् स्थितं शशाङ्क मण्डलात् । नवभिर्योजन शतैः, स्थितं च समभूतलात् ॥१८॥ यह ऊपर के मंडल चन्द्र मण्डल से बीस योजन में रहा है और समतल भूमि से नौ सौ योजन रहा है । . तथाऽऽह संग्रहणी - .... "ताररवि चंद रिक्खा वुहसुक्का जीवमंगलसणीया । सगसय नउअ दस असीइ चउ चउ कमसो तिआ चउसु ॥१६॥"
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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