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________________ (२४०) रूचक पर्वत के चौथे हजार योजन में चार विदिशाओं में अत्यन्त शोभायुक्त अत्यन्त ऊंचा एक-एक शिखर है । (३३२) षट् त्रिंशत्येषु कूटेषु, तावत्यो दिक्कुमारिकाः । वसंति ताश्चतस्रस्तु, द्वीपस्याभ्यन्तरार्धके ॥३३३॥ इन छत्तीस कूटों में छत्तीस दिक्कुमारियां निवास करती है उसमें की चार दिक्कुमारी रुचक पर्वत के अभ्यान्तर आधे भाग में रहती है । (३३३) तथोक्तं षष्ठाङ्गे मल्लयध्ययनवृत्तौ-"मज्झिमरू अवगवत्थव्वा इत्यत्र रूचक द्वीप स्याभ्यरार्द्ध वासिन्य" इति एवमावश्यक वृत्यादिष्वपि जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तौ तु चतुर्विशत्यधिक चतुः सहस्र प्रमाणे रूचक गिरि विस्तारे द्वितीय सहस्रं चतुर्दिग्वतिषु कूटेषु पूर्वादि दिक्क्रमेण चतस्रो वसन्ती" त्युक्तमिति ज्ञेयं । ____ छठे अंग के मल्ली अध्ययन की टीका में कहा है कि 'मध्यम रूचक की वास्तव्य' अर्थात् रूचक द्वीप के अभ्यंतरार्ध में रहने वाली दिक्कुमारियां है इसी तरह से आवश्यक वृत्ति में भी कहा है । श्री जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति की वृत्ति में तो चार हजार चौबीस (४०२४) प्रमाण विस्तार वाले रूचक, द्वीप के विस्तार में दूसरा हजार योजन पूर्वादि चार दिशा में रहे कूट ऊपर अनुक्रम से चार दिक्कुमारियां रहती है इस प्रकार से कहा है।' . अयं च रूचकद्वीपो रूचकाब्धिपरिष्कृतः । द्वीपोऽग्रे रूचकवरस्तादृक्पाथोधि संयुतः ॥३३४॥. यह रूचक द्वीप रूचक समुद्र से लिपटा हुआ है, उसके आगे रूचकवर द्वीप रूचकवर समुद्र से युक्त है । (३३४) ततोऽग्रे रूचकवराव भास द्वीप इष्यते । परिष्कृतोऽसौ रूचकावरावभासवार्द्धना ॥३३५॥ उससे आगे रूचक वरावभास नाम के समुद्र से लिपटा हुआ रूचक वराव भास नामक द्वीप है । (३३५)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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