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________________ (२३८) मतानुसार ग्यारहवां है दूसरे मतानुसार तेरहवां है और तीसरे मतानुसार इक्कीसवां रूचक द्वीप कहा है। जीवा समासवृत्तौ तुईक्षुरस समुद्रादनन्तरं नंदीश्वरो द्वीपः ८ अरूणवरः ६ अरूण वासः १० कुण्डलवरः ११, शंखवरः १२ रूचकवर : १३ इति, अनुयोगद्वारचूर्ण्यभिप्रायेणत्रयोदशोरूचकवर:अनुयोगद्वारसूत्रे त्वरूणवास शंखवर द्वीपौ लिखितौ न दृश्येते, अत स्तदभि प्रायेणैकादशो रूचकवरः परमार्थ तु योगिनो विदन्तीति । तथा जीव समास वृत्यभिप्रायेणजम्बूद्वीपादयो रूचक वरपर्यन्ता द्वीप समुद्रा नैरन्तर्येणावस्थिता नामतः प्रतिपादिता: अतः ऊर्ध्व तु भुजंगवरकुशवर क्रौचवरा असंख्येयेतमा असंख्येयतमा इति ध्येयं ॥' श्री जीव समास की वृत्ति में इक्षुरस समुद्र के बाद आठवां नंदीश्वर द्वीप नौवा, अरूणवर, दसवा अरूणवास, ग्यारहवां कुंडलवर, बारहवां शंखवर और तेरहवां रूचकवर द्वीप कहा है । श्री अनुयोगद्वार की चूर्णि की अभिप्राय से रूचकवर द्वीप तेरहवां है । और अनुयोग द्वार के सूत्र में तो अरूणावास और शंखवर द्वीप का उल्लेख नहीं किया उसके अभिप्राय से रूचकवर द्वीप ग्यारहवां है। परमार्थ तो ज्ञानी भगवन्त जानते हैं । तथा श्री जीव समास वृत्ति के अभिप्राय से जम्बू. द्वीप से लेकर रूचकवर द्वीप तक के निरंतर रहे द्वीप समुद्र नाम से कहे है उसके बाद भुजंगवर, कुशवर, कांचवर, नाम के असंख्य असंख्या है । ऐसा समझना । द्वीप स्यास्य बहुमध्ये, वर्तते वलयाकृत्तिः । . . पर्वतों रूचकाभिख्यः स्फाटो हार इवोल्लसन् ॥३२५॥ इस द्वीप के ठीक मध्यविभाग में रूचक नाम का वलयाकार पर्वत है जो विस्तृत उल्लसता प्रसन्नता का हार के समान शोभायमान है । (३२५) योजनानां सहस्राणि, चतुरशीतिमुच्छ्रितः । मूले दश सहस्त्राणि द्वाविंशानि स विस्तृतः ॥३२६॥ मध्ये सप्त सहस्राणि त्रयोविंशानि विस्तृतः । चतुविंशाश्च चतुरः सहस्रान् मूर्ध्नि विस्तृतः ॥३२७॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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