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________________ (२३७) ततोऽग्रे रूचक द्वीप, एष चाष्टादशो भवेत् । त्रिप्रत्यवतारमतेऽन्यथा, द्वीपस्त्रयोदशः ॥३२४॥ इसके आगे शंख नामक समुद्रसे लिपटा हुआ शंख नामक द्वीप आता है । और उसके बाद शंखवर द्वीप उसके बाद में शंखवर समुद्र आता है, उसके बाद शंखवरावभास नामक समुद्र के चारों तरफ से लिपटा हुआ शंखवरावभास नाम का प्रख्यात द्वीप है, उसके आगे रूचक नामक द्वीप है । जोकि त्रिपत्यवतार के मतानुसार अठारहवां है और सामान्य रूप में तेरहवां है । (३२२-३२४) ___ अरूणादीनां द्वीप समुद्राणां त्रिप्रत्यवतारश्च जीवाभिगमसूत्रवृत्यादौ सविस्तारं स्पष्ट, एव, जीवाभिगम चूर्णावपि - 'अरूण दीया दीव समुद्दा तिपडोयारा यावत्सूर्यवरावभांस' इत्युक्तमिति ज्ञेयं । ___अरूणादि द्वीप-समुद्रों का त्रिप्रत्यवतार श्री जीवाभिगम सूत्र की वृत्ति आदि में विस्तार पूर्वक स्पष्ट है । श्री जीवाभिगम की चूर्णि में भी कहा है कि - अरूणादि द्वीप-समुद्र त्रिप्रत्यवतार है यह यावत् सूर्यवरावभास तक समझना ।' संग्रहणी लघुवृत्यभिप्रायेण त्वयं रूचक द्वीपोऽनिश्चित संख्या कोऽपि जंबूधायइ पुक्खरे त्यादि संग्रहणीगाथायां 'रूणवायत्ति' पदे नारूणा दीनां त्रिप्रत्यवतारस्य सूचित्तत्वात्,कुंडलवरावभासात्परं संख्या क्रमेणा नभिधानाच्च, तथा च तंद्ग्रन्थ :- "एतानि च जम्बूद्वीपादारम्य क्रमेण द्वीपानां नामानि, अतः ऊर्ध्वतुशंखादिनामानियथा कथंचित् । परंतान्यपि त्रिप्रत्यवताराणी"त्यादि जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तौ तु एकेनादेशे न एकादशे द्वितीयादेशेन त्रयोदशे' तृतीयादेशेन एकविंशे रूचक द्वीपे इत्युक्तमिति ज्ञेयं ॥' ___ संग्रहणी की लघु वृति के अभिप्राय से तो यह रूचक द्वीप का क्रम नम्बर अनिश्चित होने पर भी "जम्बू धायइ पुक्खर" त्यादि संग्रहणी गाथा में "रूणवायति" पद से अरूणादि का त्रिप्रत्यवतार सूचित है तथा कुंडलवरावभास से आगे की संख्या क्रमानुसार नहीं कहा । उसके अनुसार से जम्बू द्वीप से लेकर क्रमश: इन द्वीपों का नाम है, उसके बाद शंखादि नाम आगे पीछे है, परन्तु वह भी त्रिप्रत्यावतार है ।' इत्यादि । जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति की टीका में तो एक
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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