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शिव प्राकारा और नलिना नाम की राजधानियां है । यम प्रभ पर्वत की चारों दिशा में विशाला, अति विशाला, शय्या प्रभा तथा अमृता नाम की चार राजधानियां हैं । वैश्रमण प्रभ पर्वत की चार दिशा में अचलनद्धा, समक्वसा कुबेरिका और धनप्रभा नाम की चार राजधानियां हैं । और वरूण प्रभ पर्वत की पूर्व-पश्चिमादि दिशा में वरूण, वरुणप्रभा, कुमुदा और पुण्डरीकिणी नाम की चार राजधानियां है दक्षिण दिशा की ओर रही जो यह सोलह नगरियां है वे ईशानेन्द्र के चार लोकपाल सम्बन्धी हैं। इस तरह से द्वीप सागर प्रज्ञप्ति की संग्रह श्रेणी में कहा है। (३१३-३१८)
कुण्ड लनगस्स अब्भंतर पासे हुंति राय हाणी ओ। सोलस दक्खिणपासे सोलस पुण उत्तरे पासे ॥३१६॥ इत्यादि भगवती तृतीय शताष्ट मोद्देशक वृत्तौ। ..
'कुण्डल द्वीप के अभ्यन्तर में दक्षिण दिशा में सोलह और उत्तर दिशा में सोलह राजधानियां हैं ।' इत्यादि श्री भगवर्ती सूत्र के तृतीय शतक के आठवें उद्देश की वृत्ति के अन्दर कहा है । (३१६) ।
एवं च परितो भाति, कुण्डलोदः पयोनिधिः । तं कुण्डलवरो द्वीपः परिक्षिप्याभितः स्थितः ॥३२०॥ स्यात्कुण्डल वरोदाब्धि स्ततो द्वीप: स्थितोऽभिंतः। कुण्डलवराव भासस्तन्नामाग्रे पयोनिधिः ॥३२१॥
इस तरह कुंडल द्वीप को लिपटा हुआ 'कुंडलोद' नामक समुद्र शोभता है, उसके चारों तरफ लिपटा हुआ कुंडलवर द्वीप रहा है उसके बाद चारों तरफ कुंडलवर नाम का समुद्र है, उसके बाद कुंडलवरा व भास नाम का द्वीप है और उसके बाद आगे कुंडलवरा व भास समुद्र होता है । (३२०-३२१)
अग्रे शंखाभिधो द्वीपः शंखवार्द्धिपरिष्कृतः । ततः शंखवरो द्वीपस्ततः शंख वरोऽवुधिः ॥३२२॥ द्वीपस्ततः शंखवरावभास इति विश्रुतः । स विष्वगन्चितः शंखवरावभासवार्धिना ॥३२३॥