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________________ (२३५) चत्वारश्चत्वार एव, प्रत्येकं सन्ति भूधराः । सोमयमवै श्रमणवरूणप्रभसंज्ञकाः ॥३१०॥ अष्टाप्येते रतिकरपर्वताकृतयो मताः । उद्वेधोच्चत्वविष्कम्भैरु द्दामरामणीयकाः ॥३११॥ इस पर्वत से दक्षिण और उत्तर दिशा में नजदीक तथा अभ्यंतर चार-चार पर्वत है उसके नाम सोमप्रभ, यमप्रभ, वैश्रमण प्रभ, और वरूण प्रभ है इन आठ पर्वतों की आकृति रति कर पर्वत के समान है तथा ऊंचाई गहराई चौड़ाई से अत्यंत रमणीय लगते हैं । (३१०-३११) एकैकस्याथ तस्याद्रे, राजधान्यश्चतुर्दिशम् । जम्बू द्वीप इव द्वात्रिंशदेता विस्तृतायताः ॥३१२॥ • इन एक-एक पर्वत की चारों दिशा में बत्तीस राजधानियां हैं जो कि जम्बूद्वीप के समान लम्बी चौड़ी हैं । (३१२) सोमा सोमप्रभा शिव प्राकारा नलिनापि च । राजधान्यो गिरेः सोमप्रभात्याच्यादिषु स्थिताः ॥३१३॥ विशालाऽति विशाला च, शय्याप्रभा तथाऽमृता। यमप्रभगिरेरे ता, राजधान्यश्चतुर्दिशम् ॥३१४॥ भवत्यचलन द्वाख्या, समक्वसा कुबेरि का । धनप्रभा वैश्रमणप्रभशैलाच्चतुर्दिशम् ॥३१५॥ 'वरूण प्रभ शैलाच्च, वरूणा वरूणप्रभा । पुर्यपाच्यादिषु दिक्षु कुमुदा पुण्डरीकिणी ॥३१६॥ दक्षिणस्यां च या एता, नगर्यः षोडशोदिताः । चतुर्णा लोकपालानां ताः सौधर्मेन्द्र सेविनाम् ॥३१७॥ उत्तरस्यां पुनरिमा, याः षोडश निरूपिताः । चतुर्णा लोकपालानां ताः ईशानेन्द्रसेविनाम् ॥३१८॥ तथोक्तं द्वीप सागर प्रज्ञप्ति संग्रहण्यां - इस पर्वत में से सोमप्रभ पर्वत की पूर्वादि चार दिशा में रहे सोम, सोमप्रभा'
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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