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१- जम्बूद्वीप, २- धात की खंड ३- पुष्कर द्वीप,४- वारूणिवर, ५- क्षीरवर द्वीप,६- घृतवर द्वीप, ७- क्षोदवर,८- नंदीश्वर द्वीप, ६- अरूण, १०- अरूणोपात, ११- कुंडलवर द्वीप, १२- शंखद्वीप, १३- रूचक, १४- भुजवर, १५- कुंचवर आदि अनेक द्वीप है । (३०४-३०५) __इति क्रमापेक्षायै कादशे कुण्डलद्वीपे" इत्युक्त एवं भगवती शतक चतुर्थोद्देशक वृत्तावप्ययमे का दशोऽभिहित, इति, तत्वं बहुश्रुता विदन्ति । - इसी क्रम की अपेक्षा से ग्यारहवां कुंडल द्वीप कहा है । इस प्रकार से श्री. भगवती सूत्र शतक चौथे उद्देश की टीका में भी ग्यारहवां कहा है । इसलिए तत्व तो ज्ञानी भगवन्त ही जानते हैं ।
अस्मिंश्च कुण्डलगिरिर्मानुषोतरवस्थितः । योजनानां द्विचत्वारिंशतं तुङ्ग सहस्र कान् ॥३०६॥ . सहस्रमेकं भूमग्नो, मूले मध्ये तथोपरि । . विस्तीर्णोऽयं भवेच्छैलो, मानुषोत्तर शैलवत् ॥३०७॥
इस द्वीप के अन्दर कुंडल गिरि नाम का पर्वत है जो कि मानुषोत्तर पर्वत के समान रहा है वह बयालीस हजार योजन ऊंचा है और एक हजार योजन भूमि के अन्दर रहा है । मूल मध्य और ऊपर में यह पर्वत मानुषोत्तर पर्वत के समान विस्तार वाला है । (३०६-३०७)
चतुर्दिशं चतुराश्चत्वारोऽत्र जिनालयाः । चतुर्गतिभवारण्यभ्रान्ताङ्गिविश्रमा इव ॥३०८॥ सर्वमेषां स्वरूपं तु, नन्दीश्वराद्रि चैत्यवत् । पार्वेऽथाभ्यन्तरेऽस्याद्रेर्दक्षिणोत्तरयोर्दिशोः ॥३०६॥
इस कुंडलं गिरि पर्वत के ऊपर चारों दिशा में चार द्वार वाले चार जिनालय है जो चतुर्गति संसार रूप अरण्य में व्याकुल बने जीवात्मा का विश्राम स्थान समान है । इन सभी चैत्यों का स्वरूप नंदीश्वर द्वीप के अन्दर रहे पर्वत के ऊपर मन्दिरों के समान है । (३०८)