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________________ (२३३) एवमन्येष्वपि ज्ञेया, निःशेषद्वीपवार्द्धिषु । व्यास द्वैगुण्यनामार्थो, स्वामिनश्च स्वयंश्रुतात् ॥३०॥ इस तरहं शेष सभी समुद्र विस्तार से दोगुने है अर्थ गर्भित नाम तथा उसके स्वामी के नाम से सब जानकारी श्रुत से स्वयं जान लेना चाहिए । (३००) ततोऽरूणवरो द्वीपस्तमप्याश्रित्य तिष्ठति । . पारावारोऽरूणवरो, महा भोगीव सेवधिम् ॥३०१॥ अरूणोद समुद्र के आश्रय से अरूणवर नाम का द्वीप है और सर्प जैसे निधि के आश्रय से रहता है, उसी तरह अरूणवर नाम का समुद्र द्वीप के आश्रय रहा है । (३०१) एनं द्वीपोऽरूणवरावभासः परिषेवते । · आलिङ्गत्यरूणवरावभासस्तं च वारिधिः ॥३०२॥ अरूण वर समुद्र को लिपटा हुआ अरूणवरवभास नाम द्वीप है उसे लिपटकर अरूणावरावभास नाम का समुद्र है । (३०२) .. ततश्च कुण्डल द्वीपो, मेदिन्या इव कुण्डलम् । ... अयं त्रिप्रत्यवतारापेक्षयाद्वादशो भवेत् ॥३०३॥ . उसके बाद पृथ्वी के कुंडल समान कुंडल द्वीप है जो त्रिप्रत्यवतार की अपेक्षा से बारहवां है ।१३०३) स्थानाङ्ग तृतीय स्थान वृत्तौ च अरूणादीनां त्रि,प्रत्यवतार मनाश्रित्याय मेकादशोऽभिहितः तथाहि : स्थानांग सूत्र के तीसरे स्थान की वृत्ति में अरूण आदि की त्रिप्रत्यवतार अपेक्षा बिना कुंडल द्वीप ग्यारहवां कहा है । वह इस प्रकार : "जम्बू दीवो१ धायइ२ पुक्खरदीवो३ अवारूणिवरो४ य । खीर वरोवि य दीवो५ धयवर दीवो य६ खोदवरो७ ॥३०४॥' नंदीसरोअ८ अरूणो अरूणोवाओ य१० कुंडलवरो य११। तह संख१२ रूअग१३ मुअवर१४ कुस१५ कुंचवरो यतो१६ दीवो ॥३०५॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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