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(२३२) एनमावेष्टय परितः स्थितो द्वीपरूणाभिधः । नंदीश्वराब्धेर्द्विगुणविष्कम्भोऽसौ निरूपितः ॥२६४॥
नंदीश्वर समुद्र के चारों तरफ वेष्टन - लिटा हुआ अरुण नाम का द्वीप आता है । अरुण द्वीप नंदीश्वरोद समुद्र से दो गुणा चौड़ा है । (२६४)
असौ निजाधीश्वरयोरशोकवीतशोकयोः ।
सुरयोः प्रभया रक्तकान्तित्वादरूणाभिधः ॥२६५॥
यह द्वीप अपने अधीश्वर अशोक और वीतशोक देवों की प्रभा से रक्त कान्ति वाला होने से अरुण नाम वाला है । (२६५)
यद्वैतत्पर्वतादीनां, सद्वजरलजन्मनाम् । . प्रसरद्भिः प्रभाजालौररूणत्वात्तथाभिधः ॥२६६॥ ..
अथवा इस द्वीप के पर्वत आदि में वज्र आदि रत्न उत्पन्न होते है, उसे रत्नों की फैलती प्रभा से अरूण (लाल) होने से अरूण द्वीप नाम पड़ा है । (२६६)
अरूणोदाभिधो वाद्धिरेनमावृत्य तिष्ठति । विस्तारतोऽरुणद्वीपद्विगुणः परितोऽप्यसौ ॥२६७॥
अरूण द्वीप के चारों तरफ से लिपटा हुआ अरूणोद नाम का समुद्र है इस समुद्र का विस्तार अरूण द्वीप से दो गुणा है । (२६७)
सुभद्र सुमनो भद्राभिधयोरे तदीशयोः । भूषणाभाभिररूणं, जलं यस्येत्यसौ तथा ॥२६८॥
इस समुद्र के अधिष्ठाता सुभद्र और सुमन भद्र नामक देवों के आभूषणों की आभा से समुद्र का जल अरूण (लाल) होने से इसका नाम अरूणोद कहा गया है । (२६८)
यद्वाऽरूणद्वीपपरिक्षेप्यमुष्योदकं स्फुरत् । ... ततोऽरूणोदाभिधानः प्रसिद्धोऽयं पयोनिधिः ॥२६॥
अथवा तो इस समुद्र का स्फुरायमान जल अरूण द्वीप की चारों तरफ गोलाकार होने से यह समुद्र अरूणोद नाम से प्रसिद्ध है । (२६६)
पापा ।