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दीपोत्सवामावास्याया, आरम्भ प्रत्यमादिनम् । अपोषणं वितन्वाना, वर्षं यावन्निरन्तरम् ॥२८८॥ भक्तया श्री जिन चैत्यानांकुर्वन्तो वन्दनार्चनम् । नदीश्वरस्तुतिस्तोत्रपाठपावितमानसाः ॥२८६॥ भव्या नन्दीश्वरद्वीपमेवमाराधयन्ति ये । तेऽर्जयन्त्यार्जवोपेताः श्रेयसी श्रायसीं श्रियम् ॥२६०॥
दिवाली की अमावस्या से लेकर प्रत्येक अमावस्या में उपवास करके एक वर्ष तक भक्तिपूर्वक जिन चैत्यों को वंदना पूजा करता है श्री नन्दीश्वर की स्तुति स्तोत्र पाठ से भावित मन वाला जो सरल भव्यजीव श्री नंदीश्वर द्वीप की आराधना करता है, वह कल्याणकारी मोक्ष की लक्ष्मी को प्राप्त करता है । (२८८-२६०)
इत्थं व्यावर्णितरूपं द्वीपं नंदीश्वराभिधम् । . _ तिष्ठत्यावेष्टय परितो, नंदीश्वरोदवारिधिः ॥२६१॥
इस प्रकार उसका वर्णन किया है उस नंदीश्वर द्वीप के चारों तरफ से लिप्त हुआ नंदीश्वरोद नाम का समुद्र रहा हुआ है । (२६१)
सुमनः सुमनोभद्रो, सुरौ समृद्धिमत्तया । नंदीश्वरौ तत्संबंधि, जलमस्येत्यसौ तथा ॥२६२॥
सुमना और सुमनोभद्र नाम के दो देव समृद्धिशाली होने से नंदीश्वर कहलाते हैं । नंदी का अर्थ समृद्धि-ईश्वर अर्थात् स्वामी, उसके सम्बन्धी जल होने से नंदीश्वरोद समुद्र कहलाता है । (२६२)
लग्नं नंदीश्वरे द्वीपे जलं वाऽस्यत्यसौ तथा । । असौ नंदीश्वरद्वीपाद्वार्द्धिर्द्विगुणविस्तृतः ॥२६३॥
अथवा इस समुद्र का जल नंदीश्वर द्वीप का संलग्न होने से भी यह समुद्र नंदीश्वरोद कहलाता है । यह समुद्र नंदीश्वर द्वीप से दो गुणा (डबल) चौड़ा है । (२६३)