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सौ धर्मेन्द्र की अग्रमहिषियों के समान ये आठ राजधानियां ईशानेन्द्र की आठ अग्रमनिषियों की है, और इन सोलह राजधानियों में एक-एक आर्हत चैत्य से शोभा को धारण की है । (२७६)
इत्यर्थताः स्थानाङ्गदिषु :मतान्तरे तूत्तराशासंबद्धौ यावुभौ गिरी । तयोः प्रत्येकमष्टासु दिक्ष्वीशान सुरेशितु ॥२७७॥ महिषीणां राजधान्योऽष्टनामष्टाष्ट निश्चिताः । एवं च याम्य दिक्संबद्ध यो रतिकराद्रयोः ॥२७८ ॥ प्रत्येकमष्टासु दिक्षु वज़पाणेविंडोजसः । इन्द्राणीनां राजधान्योऽष्टनामष्टाष्ट निश्चिताः ॥२७६ ॥
इस विषय में श्री स्थानांग सूत्र आदि में कहा है कि - मतान्तर में तो उत्तर दिशा सम्बन्धी जो दो पर्वत है, उस सम्बन्धी आठ दिशा में ईशान इन्द्र की आठ अग्रमहिषी की आठ-आठ राजधानी कही है । इस तरह से दक्षिण दिशा सम्बन्धी रतिकर पर्वत की प्रत्येक आठ दिशा में सौधर्मेन्द्र की आठ अग्रमहिषयों की आठ राजधानी निश्चित है । (२७५-२७६)
तथोक्तं श्री जिनप्रभसूरि कृते नन्दीश्वर कल्पे - . तत्र द्वयो रतिकराचलयोर्दक्षिणस्थयोः । शकस्येशानस्य पुनरूत्तरस्थितयोः पृथक् ॥२८०॥
अष्टानां महादेवीनां राजधान्योऽष्ट दिक्षुताः । . लक्षाबाधा लक्षमाना, जिनायतनभूषिताः ॥२८१॥
सुजाता च सौमनसा, चार्चिर्माली प्रभाकरा । पद्मा शिवा शच्यंजने, भूता भूतावतंसिका ॥२८२॥ गोस्तूपा सुदर्शने अप्यमलाप्सरसौ तथा ।
रोहिणी नवमी चाथ, रत्ना रत्नोच्चयापि च ॥२८३॥ .. सर्वरला रत्नसंचया वसुर्वसुमित्रिका ।
वसु भागापि च वसुन्धरानन्दोत्तरे अपि ॥२८४॥