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________________ (२२६) . सोनी देव ने ढोल को निकाल दिया, तब जबरदस्ती भी गले में आ गया, इस तरह बारम्बार चेष्टा करने से उसकी गरदन खण्डित हो गई इससे वह दुःखी बना अन्य देवों को भी हास्य का कारण बना था । उस समय में उसके पूर्व जन्म का मित्र नागिल श्रावक जोकि उस समय में अच्युत देव लोक में देव था वह अमर पर्षदा में आकर उस मित्रदेव के बोध देकर सम्यकत्व दर्शन प्राप्त कराया था । यह दृष्टान्त श्री नंदीश्वर की यात्रा के साथ में जुड़ा हुआ होने से इतना यहां दिया है । (२५६-२५८) जंघाविद्याचारणानां, समुदायो महात्मानाम् । इह चैत्यनमस्यार्थं श्रद्धोत्कर्षादुपेयुषाम् ॥२५६॥ ददात्युपदिशन् धर्म, युगपद्भावशालिनाम् । . सज्जङ्गमस्थावरयोस्तीर्थयोः सेवनाफलम् ॥२६०॥ जंघा चारण, विद्या चारण महात्माओं के समुदाय जो श्रद्धा के उत्कर्ष भावना से यहां नंदीश्वर द्वीप में चैत्य को वंदन के लिए आते हैं। ये महात्मा जंगम तीर्थ स्वरूप होते है, जबकि यह तीर्थ स्थावर है । इस तरह स्थावर व जंगम तीर्थो के युगपद भाव से शोभते और धर्मोपदेश प्रदान करते उन मुनिवरों का समुदाय स्थावर-जगम तीर्थ की सेवा का फल यात्रिक को देते हैं । (२५६-२६०) द्वीपस्य मध्यभागेऽस्य, चतुष्के विदिशां स्थिताः। चत्वारोऽन्ये रतिकरा, गिरयः सर्वरत्नजाः ॥२६१॥ इस द्वीप के मध्य विभाग में चार विदिशाओं में सर्व रत्न मय चार रतिकार पर्वत रहे हुए है । (२६१) योजनानां सहस्राणि, ते दशायतविस्तृताः । सहस्रमेकमुत्तुङ्गा, आकृत्या झल्लरी निभाः ॥२६२॥ सार्द्ध द्वे योजन शते, भूमनाः परिवेषतः । एकत्रिंशत्सहस्राणि, त्रयोविंशा च षट्शती ॥२६३॥ . ये चार रतिकर पर्वत दस हजार योजन लम्बे, दस हजार योजन चौड़े, एक हजार योजन ऊंचे और आकृति में झंल्लरी बाजे के समान है वे भूमि में दो सौ
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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