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नत्यद्देवनर्तकीनां, रणन्तो मणिनूपुराः । वदन्तीव निर्दयां हि पातैम॒द्वंहपीड नम ॥२५३ ।।
नृत्य करती देव नर्तकियों के रण रणार करते मणिमय नूपुर मानो कि निर्दयतापूर्वक पाद निपात से कोमल चरण की पीडा को फरियाद करते थे । (२५३)
तासां तिर्यंग् भ्रमन्ती नामुच्छलन्तः स्तनोपरि । मुक्ताहारा रमावेशाद् नृव्यन्तीवाप्यचेतनाः ॥२५४॥
तिरछी भ्रमण करती फिरती उन नर्तकियों के घूमने के कारण मोती की मालाएं उछला करती थी, मानो कि अचेतन भी वे मालाएं स्तन स्पर्शजन्य काम रस के आवेश से नृत्य करती थी । (२५४) .
धिद्धिधिद्धिधिमि धिमि थेई तिनि स्वनाः । तासां मुखोद्गताश्चेतः सुख यान्ति सुध भुजाम् ॥२५५॥
नृत्य के ताल के धि...द्धि,...धि द्धि...धिमि...धिमि...थेइ...थेइ... इस तरह से उन नर्तकियों के मुख में से उच्चारण करते.शब्द उन देवों के चित्त को प्रमोद करती थी । (२५५) .
पूर्वं हासा प्रहासाभ्यां स्वर्ण कृत् स्वपतीकृतः । कृत्रिमैर्चिभ्रमैर्विप्रलोभ्य यः स्त्रीषु लम्पटः ॥२५६॥ सौऽत्र कण्ठान्निराकुर्वन्निपतन्तं बलाद्गले । मृदङ्ग. भगुर ग्रीवो, विलक्षोऽहासयत्सुरान् ॥२५७॥ अच्युतत्रिदशीभूत प्राग्जन्मसुहृदा कृतः ।। नागिलेनाप्तसम्यक्त्वः प्राप्तेनामरपर्षदि ॥२५८॥ त्रिंभि विशेषकं ।।
इस सम्बन्ध में कुमार नदी सोनी का उदाहरण कहते है - पूर्व जन्म में स्त्रियों में अति लंपट सोनी था. उसे हासा-प्रहासा नाम की व्यंतर देवियां ने कृत्रिम कटाक्ष विभ्रमो द्वारा प्रलोभित करके अग्नि में प्रवेश करवा कर अपना पतिदेव बनाया था । यहां नंदीश्वर द्वीप की यात्रार्थे निकालते सौ धर्मेन्द्र के हुकम से उस देव के गले में बजाने के लिए ढोल आकर पडा, वह काम मंजुर न होने से उस