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________________ (२२४) महोत्सव करते है और इसकी जो चार दिशा की महा वापिकाओं में स्थित स्फटिक के चार दधि मुख पर्वत है उस पर रहे चैत्य में शक्रेन्द्र के चार दिक्पाल वहां की रही शाश्वती अरिहंत प्रतिमाओं भी विधिपूर्वक अष्टाह्निक महोत्सव करते है । (२४५-२४७) ईशानेन्द्र स्त्वौत्तराहेऽन्जनाद्रौ विदधाति तम् । तल्लोकपालास्तद्वापीदध्याधद्रिषु कुर्वते ॥२४॥ उत्तर दिशा के अंजन गिरि पर्वत ऊपर इशानेन्द्र तथा उस पर्वत की बावडी के दधि मुख पर्वत ऊपर उसके चार दिग्पाल अट्ठाई महोत्सव करते हैं । (२४८) चपरेन्द्रो दाक्षिणात्यन्चनाद्रावुत्सवं सृजेत् । ... तद्वाप्यन्तर्दधिमुखेष्वस्य दिक्पतयः पुनः ॥२४६॥ दक्षिण दिशा के अंजन गिरि पर्वत ऊपर चमरेन्द्र तथा उसकी बावडी के दधि मुख पर्वत पर उसके दिग्पाल अट्ठाई महोत्सव करते है ! (२४६) पश्चिमऽन्जनशैले तु, वलीन्द्रः कुरुते. महम् । तद्दिक्पालास्तु तद्वाप्यन्तर्भागदधिमुखाद्रिषु ॥२५०॥ पश्चिम दिशा के अंजन गिरि पर्वत पर बलीन्द्र तथा उसकी बावडी के दधिमुख पर्वत ऊपर उसके लोकपाल अट्ठाई महोत्सव करते है । (२५०) एतत्सर्वमर्थतो जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रेद्ध ऽपि - तत्र गायन्ति गन्धर्वा, मधुरैर्नादविभ्रमैः । समान ताल विविधातोद्य निर्घोषबन्धुरैः ॥२५१ ॥ मृदङ्गवेणु वीणा दितूर्याणि संगतैः स्वरैः । . कौशलं दर्शयन्तीव, तस्यां विबुधपर्षदि ॥२५२॥ इन सब बातों का अर्थपूर्वक श्री जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भी कहा है - श्री नंदीश्वर द्वीप के महाकाय जिनालयों में गंधर्व देव मधुर नाद और विभ्रम से युक्त और समान ताल का तथा विविध वाजिंत (बाजे) स्वर, शब्द सहित सुन्दर गान करते है ढोलक बांसुरी वीणा आदि बाजे, अपने संगत युक्त सुन्दर स्वर से मानो कि वह सुर परिषद में अपनी कौशल का प्रदर्शन करा रहे थे । (२५१-२५२)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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