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________________ (२२३) प्रतिवर्ष पर्युषणा चतुर्मासक पर्वसु ।। इहाष्टौ दिवसान् यावदुत्सवं कुर्वते सुराः ॥२४३॥ इसी तरह से प्रति वर्ष पर्युषणों के दिनों और चातुर्मासिक आदि पर्यों में देवता यहां पर आठ दिनों का श्री जिन भक्ति का महोत्सव करते हैं । (२४३) ___तथोक्तं जीवाभिगम सूत्रे - "तत्थ वहवे भवनवइवाणमंतरजोइस वेमाणिया देवाचउमासियापाडिवएसु संवच्छरिएसु वा अण्णे सु बहुसु जिण जम्मणणिक्खमणणाणुप्पत्ति-परिणिव्वाणमादिएसु देव कुज्जेसु य यावत् अट्ठाहितारू वाओ महा महिमाओ कारेमाणापाले माणा सुहंसुहेणं विहरंति॥" श्री जीवाभिगम सूत्र में कहा है कि - "वहां बहुत भवनपति, वाण व्यन्तर, ज्योतिष्क वैमानिक देव, चातुर्मासिक एकम तथा संवच्छरी में भी और अन्य भी बहुत श्री जिनेश्वर भगवान के जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान, निर्वाण आदि और अपने देव कार्यों में आठ दिनों का महा महोत्सव महा महिमा करते पालन करते सुखपूर्वक विचरण करते हैं ।" . तत्रापि नियत स्व स्व स्थानेषु सुर नायकाः । उत्सवान्सपरीवाराः कुर्वन्ति भक्तिभासुराः ॥२४४॥ - नंदीश्वर द्वीप में भी अपने-अपने नियत स्थान में देवता और देवेन्द्र भक्ति पूर्वक देदीप्यमान बनकर सपरिवार अट्ठाई महोत्सव करते हैं । (२४४) । . तथाह नन्दीश्वकल्प: - प्राच्ये ऽन्जनगिरौ शक्रः कुरुते ऽष्टाह्निकोत्सवम्। प्रतिमानां शाश्वतीनां, चर्तुद्वारे जिनालये ॥२४५॥ तस्य चाद्रेश्चतुर्दिक स्थमहावापीविवर्तिषु । स्फाटि के षु दधिमुखपर्वतेषु चतुर्ध्वपि ॥२४६॥ चैत्येष्वर्हत्प्रतिमानां, शाश्वतीनां यथाविधि । चत्वारः शक्रदिक्शाला: कुर्वतोऽष्टाहि कोत्सवम् ॥२४७॥ नन्दीश्वर कल्प में कहा है कि - पूर्व दिशा के अंजन गिरि पर्वत पर शाश्वती प्रतिमा के चार द्वार वाले जिनालय में, सौधर्मेन्द्र महाराज अष्टाह्निका
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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