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(२२१) दामानि धूपघटयोष्टौ, मङ्गलानि ध्वजास्तथा । भान्ति षोडश कुम्भादीन्येष्वलङ्करणानि च ॥२३२॥ घण्टा वन्दन-मालाश्च, भृङ्गाराश्चात्मदर्शकाः ।
सु प्रतिष्ठक चङ्गे र्यश्छवैः पटलकै र्युताः ॥२३३॥ युग्मं ॥ .. यहां मालाएं धूप घटी-धूपदानी, अष्ट मंगल, ध्वजा सोलह कुंभादि तथा अलंकार तथा. घंटा, तोरण कलश-शृंगार दर्पण, बडे थाल (सुप्रतिष्ठान छाषटोकरी छत्र पट्टे आदि से युक्त सेवक प्रतिमा शोभायमान हो रही है। (२३२-२३३)
स्वर्ण वर्ण चारू रजोवालुकाभिर्मनोरमाः । भूमयस्तेपु राजन्ते, मूतैः शोभालवैरिव ॥२३४॥
सुवर्ण वर्णा तथा सुचारु रज़्ज और वालुका द्वारा मनोहर-शोभायमान वहां की भूमियां मानो मूर्तिमान शोभति न हो इस तरह शोभती है । (२३४)
अथ कैश्चित्कृत स्नानैः सद्ध यानैधृतधौति कैः। अन्तर्बहिश्चावदातैः, शरत्कालहदैरिव ॥२३५॥ कैश्चित्कृतोत्तरासङ्गै मुखकोशावृताननैः । तत्काल नष्टान्तः पापपरांवृत्तिभयादिव ॥२३६॥ मईयद्भिश्चन्दनेन कै श्चित्कर्पूरकुङ्कभे । मोह प्रताप यशसी, चूर्णयद्भिरिवोर्जिते ॥२३७॥ कैंश्चिद् घृसृण निर्यासोल्लासिकच्चोलकच्छलात् । हृद्यमान्तं भक्तिरागं दधद्भिः प्रकटं बहिः ॥२३८॥ कैश्चिन्नाना वर्ण पुष्योद्दामदामौघदम्भतः । श्रयद्भिरद्भुतश्रेयः श्रेणी मिव करे कृताम् ॥२३६॥ वन्द मानैः पर्युपासमानैः पूजापरायणैः ।
प्रासादासतेऽभितो भान्ति सुरा सुरनभ श्चरैः ॥२४०॥ पड्भि कुलकं । - अब इस नदीश्वर के भव्य मंदिर में चारों तरफ से आते पूजा के अर्थी भव्यात्या उन मंदिरों की शोभा में कैसी वृद्धि करते थे उसे कहते है - वंदन करते कितनेक लोगों ने स्नान करके सद्ध्यान द्वारा और धोये उज्जवल धोती आदि वस्त्र