SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२२०) वहां चारों दिशा में रत्नमय सिंहासन पर श्री अरिहंत परमात्मा की सत्ताईस शाश्वत प्रतिमाएं विराजमान है अतः एक दिशा के अन्दर सत्ताईस सत्ताईस इस तरह प्रत्येक मंदिर के अन्दर एक सौ आठ प्रतिमा है और द्वार में सोलह प्रतिमा होती है । इस प्रकार श्री जिनेश्वर भगवान की एक सौ चौबीस प्रतिमाओं की स्तवना करता हूं । (२२६-२२७) ऋषभो वर्द्धमानश्च, चन्द्रानन जिनेश्वरः । - वारिषेणश्चेति नाम्ना, पर्यङ्कासन संस्थिताः ॥२८॥ . श्री ऋषभदेव श्री वर्धमान स्वामी, श्री चन्द्रानन स्वामी तथा श्री वारिषेण स्वामी इन नाम की पर्यंकासन से विराजमान चार-चार प्रतिमाएं हैं । (२२८). द्वे द्वे च नाग प्रतिमे, जिना पुरतः स्थिते । . द्वे द्वे च यक्षभूतार्चे आज्ञाभृत्प्रतिमे अपि ॥२२६॥ विनयेन संमुखीनघटि तान्जलि संपुटे । भक्तया पर्युपासमाने, स्थित किन्चिन्नते इव ॥२३०॥ युग्मं ।। श्री जिनेश्वर भगवान की प्रतिमा के आगे दो-दो नाग.प्रतिमाएं हैं, उसके आगे के विभाग में आज्ञा को धारण करने वाली दो-दो यक्ष और भूत की प्रतिमाएं हैं, जो विनयपूर्वक सामने अंजलि जोड़कर स्थित रही नम्रतापूर्वक भक्ति से मानो सेवा करती हो इस तररह सेवक प्रतिमा समान है । (२२६-२३०) एकै का चामरधर प्रतिमा पार्श्वयोर्द्वयोः । पृष्ठतश्च छत्रधर प्रतिमैकाऽत्र निश्चिता ॥२१३॥ दोनों तरफ एक-एक चमर धारक प्रतिमा है और पीछे एक छत्रधारक प्रतिमा निश्चित रूप में रही है । (२३१) तथोक्तमावश्यक चूर्णी-'जिणपडिमाणंपुरओदोदो नाम पडिमाओ, दो दो जक्खपडिमाओ, दो दो भूअपडिमाओ, दौ दो कुंडधर पडिमाओ' इत्यादि। ___ 'श्री आवश्यक चूर्णि में कहा है कि श्री जिन प्रतिमा के आगे विभाग में दो दो नाग प्रतिमा है, दो यक्ष प्रतिमा, दो-दो भूत प्रतिमा और दो-दो कुंडधर (सेवक) रूप प्रतिमाएं है । इत्यादि'
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy