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________________ (२१६) श्री स्थानाङ्ग सूत्र में कहा है कि - 'पूर्व दिशा में अशोक वन, दक्षिण दिशा में सप्त वर्ण, पश्चिम में चंपक वन और उत्तर दिशा में आम्रवन होते है । (२२०)' द्वौ मण्डपौ स्तूप एकश्चैत्यवृक्षो महाध्वजः । वापी वताउया वस्तूनि प्रतिद्वारममूनि षट् ॥२२१॥. प्रत्येक द्वार के छ: वस्तुएं होती है । १- २ दो मंडप ३- स्तूप, ४- एक चैत्य वृक्ष, ५- महाध्वज, ६- वनयुक्त बावडी । इस तरह छः वस्तु होती है । (२२१) प्रति प्रसादमेवं चं चत्वारो मुख मण्डपाः । अम्रङ्क षोत्तुङ्गाश्चत्वारो रङ्गमण्डपाः ॥२२२॥ स्तूपाश्चत्वारस्तथैव चैत्यवृक्षेन्द्र केतवः । .... चतस्रः पुष्करिण्यश्च, तद्वनानि च षोडश ॥२२३॥ प्रत्येक प्रासाद के चार मुख.मंडप, गगन गामी ऊंचे शिखर वाले चार रंग मंडप, चार स्तूप, इस तरह चार चैत्य वृक्ष, चार महेन्द्र ध्वज, चार पुष्करिणी और उसके सोलह वन होते हैं। (२२२-२२३) . प्रासादानामयो मध्येऽस्त्येकैका मणि पीठिका । विष्कम्भायामतः सा च योजनानीह षोडश ॥२२४॥ प्रत्येक मंदिर के मध्य में एक मणि पीठिका होती है जोकि लम्बी चौड़ी सोलह योजन है और ऊंची आठ योजन है । (२२४) - अष्टोच्छ्रितातदुपरि, स्याद् देवच्छन्दकः स च । - ततायतः पीठिकावत्तुङ्गोऽधिकानि षोडश ॥२२५॥ इस मणि पीठिका के ऊपर एक देव छंदक है, वह लम्बाई चौड़ाई में पीठिका के सद्दश ही सोलह योजन है, और ऊंचाई सोलह योजन से अधिक है । (२२५) चतुदिर्दशं तत्र भान्ति, रत्नसिंहासनस्थिताः । 'अर्हतां प्रतिभा नित्याः, प्रत्येक सप्तविंशतिः ॥२२६ ॥ . प्रति प्रासादमित्येवं, तासामष्टोत्तरं शतम् । द्वारस्थाः षोडशेत्येवं, चतुर्विशं शतं स्तुवे ॥२२७॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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