SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१४) पूर्व दिशा में देव नाम का द्वार है, जिसके अधिष्ठाता देव नाम का देव है दक्षिण दिशा में असुर नाम का द्वार है उसका अधिष्ठाता असुर नामक देव है । पश्चिम दिशा में नागनामक द्वार है उसका अधिष्ठायक रक्षण हार नाग नामक देव है, और उत्तर दिशा में सुवर्ण नामक द्वार है जिसका रक्षक अधिष्ठायक सुवर्णदेव है । (१६७-१६८) योजनानि षोडशैतदेकै कं द्वारमुच्छ्रितम् ।। योजनान्यष्ट विस्तीर्ण, प्रवेशे तावदेव च ॥१६६॥. इनमें प्रत्येक द्वार सोलह योजन ऊंचा आठ योजन विस्तृत और प्रवेश भाग के उतना ही आठ योजन है । (१६८) . प्रतिद्वारमथै कै कः पुरतो मुखमण्डपः । . . चैत्यस्य यो मुखे द्वारे पट्टशालासमो मतः ॥२००॥ अब इस प्रतिद्वार के आगे विभाम में एक-एक मुख मंडप है, जो कि चैत्य के मुख रूप द्वार में पट्टशाला समान दिखता है । (२००) तस्यापि पुरतः प्रेक्षामण्डपः श्रीभिरद्भुतः । प्रेक्षा प्रक्षेणकं तस्मै, गृहरूपः स मण्डपः ॥२०१॥ इस मुख मंडप के आगे भी प्रेक्षा मंडप है जो शोभा से अद्भुत है इसे प्रेक्षा मंडप क्यों कहते हैं ? उसे कहते हैं प्रेक्षण करना अर्थात् अच्छी तरह चारों तरफ का देखना वह प्रेक्षा कहलाता है। उसके लिए मानों यह गृह आश्रय रूप होने से यह प्रेक्षा मंडप कहलाता है । (२०१) योजनानां शतं दीघौं, पन्चाशत्तानि विस्तृतौ । योजनानि षोडशोच्चो, त्रिभिारैमनोरमौ ॥२०॥ ये मुख मण्डप और प्रेक्षामण्डप दोनों एक सौ योजन लम्बे है पचास योजन विस्तार वाले हैं सोलह योजन ऊंचे है और तीन द्वार से मनोहर है । (२०२) तथोक्तं जीवाभिगम वृत्तौ - "मुख मण्डपमानां प्रत्येक प्रत्येक त्रिदिशं-तिसृषु दिक्षु एकैक भावेन त्रीणिद्वारणि" जीवाभिगम सूत्रादर्श तु 'तेसिणं मुह मंडवाणं चउद्दिसिं चत्तारि दाग पण्णत्ता' इति दृश्यते ।'
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy