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(२१५) श्री जीवाभिगम की वृत्ति में तीनों दिशा में एक-एक द्वार होने से तीन द्वार कहे हैं, जबकि जीवाभिगम सूत्र में वह मुख मंडप की चारों दिशा में चार द्वार कहे है । इस तरह बतलाया है ।
प्रेक्षामण्डपमध्ये च, वज्ररत्न विनिर्मितः ।। एकैको ऽक्षाटक स्तस्य,मध्ये ऽस्ति मणि पीठिका ॥२०३॥ योजनान्यष्ट विस्तीर्णयता चत्वारि चोच्छ्रिता । उपर्यस्याश्चेन्द्रयोग्यं, सिंहासनमनुत्तरम् ॥२०४॥
प्रेक्षा मंडप की मध्य में वज्ररत्न निर्मित एक-एक अक्ष पाटक है और उसके मध्य विभाग में मणि पीठिका है । ये मणि पीठिकायें आठ योजन लम्बी चार योजन चौड़ी तथा इसके ऊपर इन्द्र के योग्य अनुपम सिंहासन है । (२०३-२०४)
सिंहासनस्य तस्योर्ध्वं दूष्यं विजयनामकम् । वितान रूपं तद्रत्नवस्त्रमत्यन्तनिर्मलम् ॥२०५॥
इस सिंहासन को आच्छादित करने वाला (ढकने वाला) विजय नाम का सुन्दर वस्त्र है । जोकि अत्यन्त निर्मल और वस्त्रों में रत्न समान है । (२०५) .. मुक्तादामालम्बनाय, मध्येऽस्य वज्रिकोऽङ्कुराः ।
तस्मिन्मुक्ता दाम कुम्भ प्रमाण मौक्तिकान्चितम् ॥२०६॥ - उसमें मोतियों की मालाएं लटकाने के लिए उस सिंहासन में मध्य भाग में वज्र के अंकुश है उसमें कुंभ अनुसार मोती से युक्त मोती की माला लटकती है । (२०६) ... तच्चस्वार्दोच्चत्वमानैर्मुक्तकान्चितम् ।
चतुदिर्शमर्द्धकुम्भप्रमाणमौक्तिकान्चितैः ॥२०७॥
इस कुंभ के अनुसार मोती से बनी हुई मुक्तामाला मध्य विभाग में लटकती है । जबकि चारों दिशा में अर्धकुंभ अनुसार मोतियों से बनी मालाएं चारों दिशाओं में लटकती है । (२०७) ...तथा ऽऽह स्थानाङ्गे = 'तेसु णं वइरामएसु अंकुसेसु चत्तारि कुंभिक्का मुत्तादामा प०, ते णं कुंभक्का मुत्तादामा पत्तेयं पत्तेयं तदद्धच्चत्तप्प माण