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________________ (२१०) . यह पर्वत चौंसठ हजार (६४०००) योजन ऊंचा है और पृथ्वी के अन्दर एक हजार योजन अवगाढ वाला है । (१७८) तथोक्तं जीवाभिगमे - 'दस जोअण सहस्साई विक्खंभेणं।' श्री समवायाङ्गे तु-"सव्वे विणं दधि मुह पव्वया पल्लगसं ठाण संठिया सव्वत्थ समा विक्खं भुस्सेहेणं चउसट्ठि जोअणसहस्साइं पण्णत्तां" इत्युक्त मिति ज्ञेयं ॥ श्री जीवाभिगम सूत्र के अन्दर कहा है कि - इस पर्वत की चौड़ाई दस हजार योजन की है । तथा समवायांग सूत्र में तो कहा है कि सभी दधि मुख पर्वत प्याले के संस्थान वाले हैं चारों तरफ समान है और चौड़ाई तथा लम्बाई,दोनों में चौंसठ हजार योजन है ।' पुष्करिण्यः समस्तास्तास्तेनैकैकेन भूभृता । विभान्ति प्रौढ महिला, इव क्रोडी कृतार्भकाः ॥१७६॥ ये सभी ही दधि मुख पर्वत, पूर्व वर्णित बावडियों में रहे है, इससे ही बावडियों में एक-एक पर्वत से गोद में बालक को लेकर बैठी हुई प्रौढ़ महिलाओं के समान शोभता है । (१७६) चतुर्णामन्जनाद्रीणां, धनाधनधनत्विषाम् । षोडशानां दधिमुख गिरीणामुपरिस्फुरत ॥१८०॥ जिनायतनमेकैकमेवं स्युः सर्व सङ्गयया । तृतीयाङ्गादि सिद्धन्तेषूक्तान्येतानि विंशतिः ॥१८१॥ . गाढ मेघ सद्दश श्याम कान्ति वाले चार अंजन पर्वत और सोलह दधिमुख पर्वत ऊपर स्फुरामान एक-एक जिनायतन - जिनमंदिर है । जिसकी सर्व संख्या बीस होती है । यह बात तीसरे अंग श्री स्थानांग सूत्र आदि आगम में कहा है । (१८०-१८१) जीवाभिगम वृत्यादि ग्रन्थेषु च निरूपितो । वापीचतुष्कान्तरेषु, द्वो द्वो रतिकराचलौ ॥१८२॥ .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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