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(२०६) सुगन्ध से भ्रमरों को आकृष्ट करते लीलापूर्वक पल्लव को नचाते और अति विकसित कुसुम को धारण करती लताएं, उस वन के अन्दर पण्यांगना के समान शोभायमान होती है। अर्थात् वेश्या के पक्ष से अपनी मुखादि की सौरभ से मधुर युवानों को आर्कषण करती लीलापूर्वक वस्त्रांचल रूपी पल्लव को नचाती और विकसित पुष्पों को धारण करती वेश्या के समान लताएं हैं । (१७३)
तेषां कुन्जेषु निश्छिद्र परिच्छदाद्रिभित्तिषु । न विशन्तीशगेहेषु, चौरा इव करा रवेः ॥१७४॥
जैसे धनिक के घर में चोर प्रवेश नहीं कर सकता है, वैसे ये गाढ छाया वाले तथा पर्वतरूपी दीवार वाले कुंजों में सूर्य की किरण उस वन में प्रवेश नहीं कर सकती है।
षोडशशानामप्यमूषां वापिकाना किलोदरे । स्यादेकैको दधिमुख स्फारस्फटिकरलजः ॥१७५॥
इन सोलह बावड़ियों के मध्य विभाग के अन्दर सुन्दर स्फटिक रत्न बने हुए एक-एक दधिमुख पर्वत है । (१७५) •
मुखं शिखरमेतेषां यतो दधिवदुज्ज्वलम् । ततो होते दंधिमुखा, रौप्य शृङ्गमनोरमाः ॥१७६॥
दधि अर्थात् दही और मुख अर्थात् शिखर इस पर्वत का शिखर दधि समान उज्जवल होने के कारण से दधिमुख नाम से प्रसिद्ध है और इस पर्वत के मनोरम शिखर रूपा (चान्दी) के हैं । (१७६)
धान्यपल्यसमाकाराः, सर्वतः सद्दशा इमे । उपर्यधो योजनानां, सहस्राणि दशातताः ॥१७७॥
यह दधिमुख पर्वत अनाज के प्याले समान, चारों तरफ से समान ऊपर नीचे दस हजार योजन के विस्तार वाला है । (१७७)
चतुःषष्टिं सहस्राणि, कीर्तितास्ते समुच्छ्रिताः । .सहस्रं च योजनानामुद्विद्धा वसुधान्तरे ॥१७८॥