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________________ (२०८) नन्दिषेणा तथाऽमोघा, गोस्तूपा च सुदर्शना । चतुर्दिशं पुष्करिण्यः, प्रतीचीनान्जनागिरे ॥१६८॥ पश्चिम दिशा के अंजन गिरि की चारों दिशा में नंदिषेणा, अमोघा, गोस्तूप और सुर्दशना नाम की चार बावड़ियां है । (१६८) उदीच्येतूभयोरपि मतयोस्तुल्यमेव ॥ एकैकस्या पुष्करिण्या, व्यतीत्यदिक्चतुष्टये । . . योजनानां पन्च शतान्येकैकमस्ति काननम् ॥१६६॥ और उत्तर दिशा के अंजन गिरि की बावड़ियां दोनों मत में समान है। इन प्रत्येक बावड़ियों की चारों दिशा में ५०० योजन दूर जाने के बाद एक-एक वन है । (१६६) अस्त्यशोकवनं प्राच्यां सप्तवर्णवनं ततः ।। याम्यां प्रत्यक् चम्पका नामथाम्राणामुदग् वनम् ॥१७०॥ पूर्व दिशा में अशोक वन है, दक्षिण दिशा में सप्तपर्ण वन है, पश्चिम दिशा में चंपक वन है और उत्तर दिशा में आम्रवन है । (१७०) योजनानां लक्षमेकमायतान्यखिलान्यपि । शतानि पन्च पृथुलान्यद्भुतान्यद्भूतश्रिया ॥१७॥ प्रत्येक वन का एक लाख योजन का विस्तार है, पांच सौ योजन का घेराव है. और विशिष्य शोभनीय होने से अद्भुत प्रकार से शोभायमान है । (१७१) सच्छायैः सुमनोरम्यैर्महास्कन्धैः समुन्नतैः । विभान्ति तरूभिस्तानि, कुलानीव नरोत्तमैः ॥१७२।। इस वन में जो वृक्ष है वे सुन्दर छायावाले सुमनोहर, महास्कंध वाले और अति ऊंचे है और इससे वन की शोभा अति बढ़कर हो रही है । जैसे उत्तम पुरुष कुल को शोभायमान करता है, वैसे ये सुवृक्ष इस वन को शोभायमान करते हैं। (१७२) सौरभ्याकृष्टमधुपा, लीलानर्तितपल्लवाः ।, उबुद्ध कुसुमास्तेषु, लताः पण्याङ्गना इव ॥१७३॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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