________________
(२०७)
नन्दोत्तरा तथा नन्दा, सुनन्दा नन्दिवर्द्धना । पुष्करिण्यश्चतस्रः स्युर्नित्योद्योताश्चतुर्दिशम् ॥१६३॥
दूसरे नित्योद्दोयोत नामक अंजन पर्वत के पूर्वादि चार दिशा में अनुक्रम से नंदोत्तरा, नंदा, सुनंदा और नंदि वर्धना पुंडरिकीणी नामक चार वापिकाएं है । (१६३)
भद्रा विशाला कुमुदा, चतुर्थी पुण्डरीकिणी । स्वयं प्रभगिरेः पूर्वादिषु दिक्ष्विति वापिकाः ॥१६४॥
स्वयं प्रभ नाम के तीसरे पश्चिम के अंजन पर्वत की पूर्वादि चार दिशा में अनुक्रम से भद्रा, विशाला, कुमुदा और पुंडरिकीणी नामक वापिका है । (१६४)
विजया वैजयन्ती च जयन्ती चापराजिता ।
वाप्यः प्राच्यादिषु दिक्षु रमणीयान्जनागिरेः ॥१६५॥
रमणीय नामक अंजन पर्वत की पूर्वादि चार दिशा में अनुक्रम से विजया (उत्तर) वैजयंती, जयंति और अपराजिता नाम की चार बावडियां है । (१६५)
अयं नंदीश्वर स्तव नीदश्वर कल्पाभिप्रायेण षोडशा नामपिपुष्करिणी नां नामक्रमः स्थानाङ्ग जीवाभिगमाभि प्रायेण त्वेवं -
- इन बावड़ियों के नाम क्रम विषय में श्री नंदीश्वर स्तव और श्री नदीश्वर कल्प का यह अभिप्रायः है । अब श्री स्थानांग सूत्र और जीवाभिगम सूत्र का अभिप्रायः इस प्रकार कहते हैं :
नन्दोत्तरा तथा नंदा, चानन्दा नन्दिवर्द्धना । चतुर्दिशं पुष्करिण्यः, पौरस्त्यस्याज्जनागिरेः ॥१६६॥
पूर्व दिशा के अंजन गिरि की चारों दिशा में १- नंदोत्तरा, २- नंदा, ३- आनंदा और ४ - नंदिवर्धना नाम की चार बावड़ियां है । (१६६)
भद्रा विशाला कुमुदा, चतुर्थी पुण्डरीकिणी । चतुर्दिशं पुष्करिण्यो, दाक्षिणात्यान्जनागिरेः ॥
१७॥ दक्षिण दिशा के अंजन गिरि की चारों दिशा में भद्रा, विशाला, कुमुदा और पुंडरीकिणी नाम की बावड़ियां है । (१६७)