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अनरालैमरालात्तैर्मृणालैर्ललितान्तराः ।
आमुक क्तव्यक्तशृङ्गरहारैरिव मनोहराः ॥१५८॥
उज्जवल कमल की कली को चोंच में धारण करता हंस इन बावड़ियों के मानो शृंगार का हार हो इस तरह लालित्य पूर्ण मनोहर शोभा को देता है । (१५८)
सोपानावतत्स्वः स्त्रीनूपुरध्वनि बोधितैः । .. मरालैर्मधुरध्वानै मुंदोपवीणिता इव ॥१५६॥
देवियां सोपान के जीने से उतरती है उस समय पायल की होती आवाज से . जागृत हुए हंसों की मधुर ध्वनि से मानो आनंद की वीण बजती हो ऐसा लगता है । (१५६)
कीडद्दिव्याङ्गनोत्तुङ्गवक्षोजास्फालनोझितैः । आत्तरङ्गै सत्तरङ्गै रिवाङ्गीकृतताण्ड वा .॥१६०॥
क्रीड़ा कर रही देवांगनाओं के उत्तुंग वक्षोज-स्तनों के साथ में टकराने से वेगवाली और मस्त बनी बड़ी-बड़ी तरंगों से मानो बावड़ी तांडव नृत्य कर रही हो ऐसा दिखता है । (१६०)
अर्हदर्चार्चनोद्युक्त स्नातस्वः स्त्रीस्तनच्युतैः । । कस्तूरीचन्द्रघुसृणैः शोभन्ते चित्रिता इव ॥१६१॥ षड्भि कुलकं ॥
श्री अरिहंत की प्रतिमा की पूजा की क्रिया में तत्पर बनी देवांगनाएं स्नान करने के लिए इस बावडी में पड़ती है तब उनको स्तन ऊपर से निकलते कस्तूरी
और चन्दन के स्नेह द्रव्य से चित्रित बने हो उस तरह से यह बावड़ी शोभती है । (१६१)
नन्दिषेणा तथाऽमोघा, गोस्तूपा च सुदर्शना । स्युर्वाप्यो देव रमणात्पूर्वादिदिक चतुष्टये ॥१६२॥
चार अंजन गिरि पर्वतों में से देव रमण नामक अंजन पर्वत की पूर्वादि चार दिशा में अनुक्रम से नंदिषेणा, अमोघा, गोस्तूपा और सुदर्शना नाम की बावड़ियां है। (१६२)