________________
(२०५)
पुष्करिणी बावडियां है । ये चारों एक लाख योजन लम्बी एक लाख योजन चौड़ी
और दस योजन गहरी है । और मत्स्य-मछली आदि के स्वच्छ पानी के उछलते कल्लोल से शोभायमान है । (१५४-१५५)
"जीवाभिगम सूत्र वृत्तौ प्रवचन सारोद्वार वृत्तौ च एता दशयोजनोद्विद्धा उक्ताः नन्दीश्वर स्तोत्रे नदीश्वर कल्पे च सहस्त्र योजनो द्विद्धा उक्ताः ।"
श्री जीवाभिगम सूत्र की टीका के अन्दर और प्रवचन सारोद्वार की टीका में इस बावड़ियों की गहराई दस योजन की कही है । जब कि श्री नंदीश्वर स्तोत्र में तथा श्री नंदीश्वर कल्प में इन वावड़ियों की गहराई एक हजार योजन की कही
. स्थानाङ्ग सूत्रे ऽपि - "ताओ णं णंदाओ पुष्करणीओ एगं जोअ ण सयसहस्सं आयामेणं पन्नासं जो अण सहस्साई विक्खंभेण दस जोअणसयाई उव्येहेणं' इत्युक्त मिति ज्ञेयं ।' - श्री स्थानांग सूत्र में भी कहा गया है कि - 'वे नंदा आदि पुष्करिणी एक हजार योजन लम्बी, पचास हजार योजन चौड़ी और हजार योजन गहरी है ।'
चतुर्दिशं त्रिसोपानप्रतिरू पक बन्धुराः ।।
चतुर्दिदशं च प्रत्येकं रम्यास्ता रत्नतोरणैः ॥१५६॥ ... चारो दिशा में मनोहर तीन सौपान की पंक्तियों से तथा रत्न के रमणीय तोरण से ये बावडियाँ सुन्दर श्रेष्ठ दिखती हैं । (१५६)
दलच्छतद्लश्रेणिगलन्मरन्दले पतः । 'अन्योऽन्यमितर भ्रान्ति भ्रमद्भूङ्गतदङ्गनाः ॥१५७॥ . कमल पत्र तथा शतदल कमलों की श्रेणि में से टपकते मकरंद के रस से लिप्त एक दूसरे की भ्रान्ति से भौरां भ्रमरियां भ्रमण करते है अत: कमल पत्रों में से टपकते मकरंद रस से भ्रमर-भ्रमरी लिप्त हो गयी और उनमें से भी मकरंद रस टपकने लगा तथा इससे अन्य भ्रमर भ्रमरियां उसे भी कमल समझकर उसके आस पास परिभ्रमण करते हैं । (१५७)