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________________ (२०३) ततो नव सहस्राणि भाज्यानि नाप्यते परम् । सहस्त्रै श्चतुर शीत्या, भागो भाज्यस्य लाघवात् ।।१४२॥ ततश्च - भाज्य भाजकयो राश्योः कृते शून्यापवर्त्तने। भाज्यो नवात्मा चतुरशीत्यात्मा स्याच्च भाजकः ॥१.४३॥ उभावप्यपवत्येते ततोऽशच्छेदको त्रिभिः । योजनांशत्रयं लब्धमष्टाविंशतिजं ततः ॥१४४॥ उसकी भावना इस तरह से - दस हजार योजन का व्यास जो कि पृथ्वी तल में रहा है । उसमें से ऊपर आने तक में नौ हजार योजन कम होता है अतः नौ हजार को चौरासी हजार से भाग देने का रहता है, परन्तु भाजक करते भाज्य संख्या छोटी होने से कुछ नहीं रहता । इसमें भाज्य और भाजक राशि में से शून्य को दूर करना अत: ६४८४-६ भाज्य बनता है और ८४ भाजक बनता है, दोनों को तीन से भाग देने से ३/२८ योजन बनता है ६/८४ ३/२८ । (१४१ से १४४) यद्वा - अष्टाविंशति गुणितो भाज्योराशिलवात्माको भवति । द्वे लक्षे. द्वापन्चाशता - सहस्रैर्युते तेऽशाः ॥१४५॥ । तेषां सहस्रेश्चतुरशीत्या भांगे हृते सति । लब्धं विभागत्रितयमष्टाविंशति संभवम् ॥१४६॥ अथवा एक योजन के २८ भाग करके उसमें से ३ भाग समझना या २८ से गुणा करने से राशि अंशात्मक होती है और वे अंश दो लाख बावन हजार (२८४६०००-२५२०००) होते है और उसे८४००० से भाग देने से ३/२८ अंश होता है । (१४५-१४६) . चतुः शताधिकनवसहस्रयोजनात्मककात् । मतान्तरे स्थूलव्यासात्सहस्रोरूशिरोऽवधि ॥१४७॥ मध्ये शतानि चतुरशीतिः क्षीयन्त इत्यतः । .. भज्यन्ते तानि चतुरशीत्या किल सहस्रकैः ॥१४८॥ भागा प्राप्त्या च चतुरशीत्या शतैस्तयोर्द्वयोः । कृतेऽपर्वत्तेने लभ्यो, योजनांशो दशोद्भवः ॥१४६॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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