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________________ (२००) आसते शेरते स्वैरं, कीडन्ति व्यन्तरामराः । व्यन्तरीभिः सह प्राच्य पुण्यानां भुज्जते फलम् ॥१२७॥ इस नंदीश्वर द्वीप में मधुर इक्षुरस समान स्वादिष्ट तथा सम्पूर्ण विकसित कमलों में से बहते मकरंद से सुगंधित बनी जलवाली वावड़ी आदि जलाशयों में तथा खिले हुए पुष्प और फलों से अत्यन्त सुन्दर शोभायमान सर्वरत्न मय उत्पात पर्वत ऊपर व्यंतरियों के साथ में व्यंतर देवता निवास करते है, आराम करते हैं, इच्छानुसार क्रीड़ा करते हैं और वे इस तरह पूर्व के पुण्य से कर्म भोगते है । (१२४-१२६) इहत्यमाधिपत्यं द्वौ, कैलासहरिवाहनौ । धत्तः समृद्धौ देवौ द्योः, सूर्याचन्दमसाविव ॥१२८॥ . . जैसे आकाश के स्वामित्व को सूर्य, चन्द्र धारण करते हैं, वैसे इस नंदीश्वर द्वीप का आधिपत्य कैलास और हरिवाहन नामक समृद्ध देव धारण करते हैं । (१२८) . एवं नन्द्या समृद्धयाऽसावीश्वरः स्फातिमानिति । नन्दीश्वर इति ख्यातो, द्वीपोऽयं सार्थकाभिधः ॥१२६॥ इस तरह से यह द्वीप आनंद कल्याणकारी, समृद्धि से बढ़कर होने से नंदीश्वर नाम का सार्थक है । (१२६) त्रिषष्टया कोटिभिर्युक्तमेकं कोटिशतं किल । लक्षश्चतुरशीत्याढ यमेतद्वलयविस्तृतिः ॥१३०॥ इस द्वीप का वलय विस्तार एक सौ तिरसठ करोड़ और चौरासी लाख (१६३८४०००००) योजन का है । (१३०) द्वीपस्यास्य बहुमध्ये, शोभन्ते दिक्चतुष्टये । जात्यान्जनरत्नमयाश्चत्वारोऽन्जन पर्वताः ॥१३१॥ इस द्वीप के लगभग मध्यभाग में जातिमानं अंजन रत्नमय चार अंजन गिरिपर्वत शोभायमान है । (१३१)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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