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(१६६) ततश्च - चतुर्जातकसम्मिश्रातिभागावातितादपि।
. अति स्वादु वारिरिक्षुरसादप्येष तोयधिः ॥१२०॥
वह इस प्रकार से चतुर्जातक अर्थात उपरोक्त चार प्रकार के द्रव्यों से मिश्रित हो वह और तीन भाग तीन काल, गरम किया हो वह इक्षुरस से अति मधुर इस समुद्र का जल होता है । (१२०)
एवं च लवणाम्भोधिः, कालोदः पुष्करोदधिः । स्वयंभूर्वारुणीवार्द्धितक्षीरपयोनिधी ॥१२१॥ एतान् विहाय सप्ताब्धीन्, सर्वेऽप्यन्ये पयोधयः ।
तादृगिक्षुरसोत्कृष्ट स्वादूदक मनोरमाः ॥१२२॥ . इस प्रकार लवण समुद्र कालोदधि समुद्र पुष्करोदधि समुद्र, स्वयं भूरमण समुद्र, वारूणीवर समुद्र, घृतवर समुंद्र और क्षीरोदधि समुद्र इन सात समुद्रों को छोड़कर अन्य सब समुद्रों का पानी इक्षुरस के स्वाद से भी उत्कृष्ट सर्वश्रेष्ठ
स्वादिष्ट और मनोहर होता है.। (१२१-१२२) .. . एकाशीती: कोटयोऽथ, लक्षा द्विनवंतिस्तथा ।
पयोधेरस्य वलय विकम्भः परिकीर्तितः ॥१२३॥
इस समुद्र का वलय चौड़ाई इकासी करोड़ बयानवे लाख (८१६२०००००) योजन कहा गया है । (१२३)
अथ नन्दीश्वरो द्वीपः, क्षोदोदाम्भोनिधेः परः । प्ररूपितो विष्टपेष्टैरष्टमः कष्टमर्दिभिः ॥१२४॥
कष्ट.को नाश करने वाला त्रिभुवन पतियों ने क्षोदोद नाम के इस समुद्र के बाद आठवां नंदीश्वर नाम द्वीप कहा है । (१२४)
मधुरे क्षु रस स्वादूदकेषु दीर्घिकादिषु । जलाश्रयेषु फुल्लाब्जमकरन्द सुगन्धिषु ॥१२५॥ स्फुरत्पुष्प फलोद्दामाभिरामद्रुमशालिषु । अत्रोत्यात पर्वतेषु, सर्वरत्न मयेषु च ॥१२६॥