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________________ (१६८) विष्कम्भोऽस्य योजनानां,विंशतिःकिल कोटयः। अष्टचत्वारिंशताऽऽढया, लक्षैर्दक्षैर्निरूपिताः ॥११४॥ पंडित पुरुषों ने इसकी चौड़ाई, बीस करोड़ अड़तालीस लाख (२०, ४८, ००, ०००) योजन प्रमाण कहा है । (११४) द्वीपः क्षोदवराभिख्यः, परोऽस्मात्तोयराशितः । निर्जरौ स्वामिनावस्य, स्तः सुप्रभ महाप्रभौ ॥११५॥ ... इस समुद्र के बाद क्षोदवर नामक द्वीप है और उसके स्वामी सुप्रभ और महाप्रभ नामक दो देव है । (११५) . क्षोदो नाम क्षोदरसः स इक्षुरस उच्यते । . तंद्र पमुदकं वाप्यादिषु यस्येत्यसौ तथा ॥११६॥ क्षोद यानि क्षोदरस अर्थात इक्षुरस है । इस द्वीप की वावड़ी कुंए आदि में इक्षुरस समान होने से यह द्वीप क्षोदवर नाम से प्रसिद्ध है । (११६) । चत्वारिंशत्कोटयो ऽस्य विष्कम्भः कथितो जिनैः। षण्ण वत्याऽन्विता लक्षैः, सुरलक्ष निषेवितैः ॥११७॥ लाखों देवों द्वारा उपासना किया गया यह द्वीप श्री जिनेश्वर भगवान ने चौड़ाई में चालीस करोड़, छियानवे लाख (४०६६०००००) योजन का कहा है । (११७) । ततः परन्तु क्षोदोदाभिधानः खलु वारिधिः । वर्ततेऽत्यंत मधुरधुरन्धरपयोधरः ॥११८॥ उसके बाद क्षोदोद अर्थात् क्षोद = इक्षुरस, उद-पानी नाम का समुद्र है जो अत्यंत मधुर पानी को धारण करता है । (११८) त्वगेलाकेसरैस्तुल्यं, त्रिसुगन्धि त्रिजातकम् । मरिचैश्च समायुक्तं चतुर्जातक मुच्यते ॥११६॥ दालचीनी, इलायची और केशर समान सुगंधी द्रव्यों से युक्त इस समुद्र का पानी सुगन्धमय और त्रिजातक कहलाता है एवम् काली मिर्च से युक्त होने से वह चतुर्जातक भी कहलाता है । (११६)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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