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इस समुद्र से आगे क्षीरवर नाम का द्वीप आता है, उसकी वावडी आदि में दूध समान जल होने से इसका नाम क्षीरवर कहलाता है । (६३)
पुण्डरीक पुष्पदन्तौ, यद्वा क्षीरोज्जवलौ सुरौ ।
अत्रेति तत्स्वामिकत्वात्, ख्यातः क्षीरवराभिधः ॥१४॥
अथवा तो दूध समान उज्जवल पुंडरीक और पुष्पदंत नामक देवता इसके स्वामी होने से क्षीरवर नाम से प्रसिद्ध है । (६४) ... . .
विष्कम्भोऽस्य योजनानां,द्वेकोटयौ चक्रवालतः।
षट् पन्चाशल्लक्ष युक्ते, परिधिश्चिन्त्यतां स्वयम् ॥६५॥
इसकी चौड़ाई गोलाकार दो करोड़ छप्पन लाख (२, ५६, ००, ०००) योजन की है इसकी परिधि स्वयं विचार कर लेना चाहिए । (६५)
ततः क्षीरवर द्वीपात्परं क्षीरोदवारिधिः । कर्पूरडिण्डीरपिण्डऽम्बरपाण्डुरः . . ॥६६॥ त्रिभागावर्तित चतुर्भागसच्छर्क रान्वितम् । स्वादनीयं दीपनीयं, मदनीयं वपुष्मताम् ॥६७॥ बृहणीयं च सर्वाङ्गेन्द्रियाहादकरं परम् । वर्णगन्धरसस्पर्शसंपन्नमतिपेशलम् - १६८॥ ईद्दग् यच्चक्रिगोक्षीरं तस्मादपि मनोहरम् । अस्य स्वादूदकमिति, क्षीरोदः प्रथितोऽम्बुधिः ॥६६॥
क्षीरवर द्वीप से आगे क्षीरोद समुद्र आता है जो कपूर के समूह समान फेनझाग के पिंड समान उज्जवल है । इस समुद्र का पानी कैसा है वह कहते हैं कि - अति गरम करने से तीन भाग उसका जल गया है और इससे चौथा भाग शेष रहा स्वच्छ मिसरी से युक्त, स्वादिष्ट, शरीर को प्रदीप करने वाला, लोगों को मद आवेग उत्पन्न करने वाला, शरीर को पुष्ट और उत्तेजित करने वाला, सर्वांग इन्द्रिय को आल्हाद करने वाला, अति सुन्दर वर्ण, गंध, रस स्पर्श से. युक्त, अतिप्रिय, मनोहर जो चक्रवर्ती के लिए गाय का दूध हो उससे भी मनोहर और स्वादिष्ट इसका पानी है, इससे इसका नाम क्षीरोदधि से प्रसिद्ध है । (६६-६६)