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... इस भाग की राशि को दोगुना करने के लिए पहले दो द्वारा गुणा करना, दो से गुणा करने के बाद दो द्वारा १४४ का छेद उडाते भाग में ७२ आता है इससे २६/७२ अंश होता है । २६/१४४४२/१४२६/७२ होता है । (७५)
मतेऽस्मिंश्च प्रतिद्वीप वार्नीन्दुतिग्मरोचिषाम् । संख्याभिधायि करणं, न प्रोक्तं विस्तृतेर्भिया ॥६॥
इस मत में प्रत्येक द्वीप समुद्र के सूर्य चन्द्र की संख्या को बताने वाला करण विस्तार के भय से यहां नही कहा । (७६)
तंदर्थिभिस्तु करण विभावना विभाव्यताम् ।
पूर्व संग्रहणी टीका, कृता वा मलयर्षिभिः ॥७७॥ .
उस विस्तृत करण के अर्थी जनों को करण विभावना स्वयं समझ लेना चाहिए, अथवा तो श्री मलयगिरि जी महाराज ने पूर्व समय में संग्रहणी की टीका में कहा हो है । (७७)
एतन्मत संग्राहिके च गाथे इमे - चोयालसयं पढमिल्लुयाएं पंतीइ चंदसूराणं । तेण परं पंतीओ चउउत्तरियाएं बुड्ढीए ॥८॥ वावत्तरि चंदाणं वावत्तरि सूरियाण पंतीओ । पढमाए अंतर पुण चंदा चंदस्स लक्खदुंग ॥६॥ .
इस मत का संग्रह करने वाली ये दो गाथा कहते है :- प्रथम पंक्ति में सूर्य चन्द्र एक सौ चवालीस (१४४) है, और उसके बाद चार-चार की वृद्धि से पंक्तिया है । (७८) सूर्य चन्द की बहत्तर बहत्तर पंक्तियां है, एक चन्द से दूसरे चन्द्र का अन्तर दो लाख योजन ही है । (७६)
"अत्र लक्खदुगं' ति लक्षद्धिकं विंशत्या शतैश्चतुस्त्रिंशैर्योजनस्य द्वि सप्ततिमैरेकोनत्रिंशद्भागैराधिकं बोद्धव्यं ॥"
'यहां पर दो लाख योजन जो कहा है उसमें २०३४- २६/७२ योजन अधिक समझ लेना चाहिए।'