________________
(१८६). इसी तरह इस द्वीपार्ध की आठ पंक्ति में चन्द्र, सूर्य का जोड़ करने से एक सौ बहत्तर (१७२) होता है । (६६)
एवं च पुष्कराद्धेऽस्मिन्, समुदितेन्दु भास्वताम् ।
शतानि द्वादश चतुःषष्टिश्च सर्व संख्यया ॥७०॥ .
इस मतानुसार शेष पुष्करार्ध में चन्द्र, सूर्य की सब संख्या बारह सौ चौंसठ (१२६४) होता है । (७०)
तत्तत्पंक्तिस्थपरिधौ स्व स्व भान्विन्दुभाजिते ।
लब्धमन्तरमर्केन्द्रो व॑िनमिन्द्वोस्तथऽर्कयोः ॥७१॥
उस-उस पंक्ति में रहे परिधि की संख्या उस-उस पंक्तिगत चन्द्र, सूर्य की संख्या द्वारा भाग देने से सूर्य, चन्द्र का अन्तर आता है, और चन्द्र से चन्द्र का और सूर्य से सूर्य का अन्तर से दो गुणा करना । (७१)
यथाऽऽद्यपंक्ति संबन्धि पूर्वोक्त परिधौ किल । . चतुश्चत्वारिंशशताऽकँदु भक्ते भवेदिदम् ॥७२॥
लक्षमेकं सहस्रं च स्फुटं सप्तदशोत्तरम् । चतुश्चत्वारिंश शतभक्तस्य योजनस्य च ॥७३॥ एकोन त्रिंशदंशाश्चा - केंन्द्वोरेतन्मिथोऽन्तरम् ।
. अस्मिंश्च द्वि गुणेऽन्योऽन्यं भान्वोतिरन्द्वोश्चतद्भवेत् ॥७४॥ - आद्य पंक्तिगत परिधि की संख्या को एक सौ चवालीस स्वरूप चन्द्र सूर्य की संख्या से भाग देने पर इस तरह चन्द्र सूर्य का अन्तर आता है, वह इस तरह एक लाख एक हजार सत्रह योजन और एक योजन के एक सौ चवालीस अंश करे उसमें से उन्तीस अंश (१०१०१७- २६/१४४) और यही संख्या दुगना करने से. चन्द्र से चन्द्र का और सूर्य से सूर्य का अन्तर आता है वह इस तरह - दो लाख दो हजार चौंतीस (२०२०३४ २६१४४) योजन होता है । (७२-७४) . द्वै गुण्यायात्र भागानां, द्वाभ्यां खल्वपवर्त्यते ।
छेदकात् छेदके तष्टे, ह्यंशराशिर्भवेन्महान् ॥७५॥