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इस तरह प्रथम पंक्ति की परिधि में उक्त संख्या मिलाने से दूसरे पंक्ति सम्बन्धी परिधि होती है, वह इस तरह-एक करोउ इकावन लाख अठत्तर हजार नौ सौ बत्तीस (१,५१,७८,६३२) योजन की दूसरी पंक्तिगत क्षेत्र की परिधि होती है । (५०-५१)
षडेव लक्षाः पूर्वस्मात्परिधेरधिकास्ततः । षण्णं वृद्धिः प्रतिलक्षमेकैकार्के दुवृद्धितः ॥५२॥
पूर्वोक्त परिधि में छः लाख की भी वृद्धि होने से और प्रत्येक लाख योजन को एक-एक चन्द्र सूर्य की वृद्धि होने से छ:-छ: चन्द्र, सूर्य की वृद्धि होती है । (५२)
एवं पंक्तौ द्वितीयस्यां, संमिता लक्ष संख्यया । . . . प्रत्येकमेक पन्चाशं, शतमिन्दु दिवाकराः ॥५३॥
इस तरह दूसरी पंक्ति में एक-एक लाख की संख्या द्वारा एकत्रित करते एक सौ इकावन (१५१) चन्द्र और उतने ही सूर्य होते हैं। (५३)
द्वितीय पंक्ति परिधौ, ततः क्षेपातयोगतः । तृतीया पंक्ति परिधिरे तावानिह जायते ॥५४॥ एका कोटयष्ट पन्चाशल्लक्षाण्येकादशापि च । सहस्राणि त्रिशती च सप्ताशीतिसमन्विताः ॥५५॥
दूसरी पंक्ति की परिधि में उक्त छः लाख बत्तीसे हजार, चार सौ पचपन (६३२४५५) की संख्या मिलाते तीसरी पंक्ति की परिधि एक करोड़ अट्ठावन लाख ग्यारह हजार तीन सौ सत्तासी (१५८११३८७) योजन होता है । (५४-५५)
पूर्वस्मात्परिधेः सप्त, लक्षा जाता इहाधिकाः ।।
वृद्धिस्तत स्तृतीयास्यां सप्तानामिन्दुभास्वताम् ॥५६॥
पूर्वोक्त जो दूसरी पंक्ति की परिधि की संख्या है, उसमें सात लाख की वृद्धि हो जाने से, यह तीसरी पंक्ति में सात-सात चन्द्र, सूर्य की वृद्धि होती है । (५६)
तुर्यापन्चम्योस्तु पंक्तयोः षण्णषण्णततः परम्। वृद्धिः षष्ठयां सप्तानां पण्णां पण्णां ततो द्वयोः ॥५७॥