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· मानुषोत्तर पर्वत के बाद पचास हजार योजन जाने के बाद गोलाकार क्षेत्र की चौड़ाई छियालीस लाख (४६०००००) योजन की होती है और उस क्षेत्र की परिधि एक करोड़ पैंतालीस लाख छियालीस हजार चार सौ सतत्तर (१४५४६४७७) योजन का कहा है । (३६-३८)
प्रति योजन लक्षं चैकेक सूर्येन्दु भावतः । प्रत्येक माद्याल्यां पन्चचत्वारिंश शतं तयोः ॥३६॥
प्रत्येक एक-एक लाख योजन में एक चन्द्र और सूर्य होने से एक पंक्ति में एक सौ पैंतालीस चन्द्र सूर्य होते है । (३६) .
पूर्वोक्त परिधिौ कोटेलक्षेभ्यश्चाधिकस्य तु । विभक्तस्य नवत्याढय द्विशत्या शशि भास्करैः ॥४०॥ लब्धे क्षिप्ते चन्द्रसूर्यान्तरेषु स्यात्तदन्तरम् । लक्षार्द्ध किन्चिदधिक षष्टियुक्तशताधिकम् ॥४१॥ .
पूर्व में कही परिधि में चन्द्र सूर्य का अन्तर कितना होता है ? उसे कहते हैं कि करोड़ लाख से अधिक (१४५४६४७७) यही परिधि की संख्या कही है उसे दो सौ नब्बे चन्द्र सूर्य की संख्या से भाग देना चाहिए, उसमें जो प्राप्त होता है यही अर्थात् पचास हजार एक सौ साठ (५०१६०) योज़न का चन्द्र सूर्य के बीच का अंतर होता है । (४०-४१)
लक्षान्तरे द्वितीयैवं पंक्तिर्लोकान्त सीमया । . . योजन लक्षान्तरालाः, स्युः सर्वा अपि पड्क्तयः ॥४२॥
इसी तरह से लाख योजन बाद दूसरी पंक्ति आती है । इसी तरह लोक अन्तिम विभाग तक लाख-लाख योजन के अन्तर वाली सर्व पंक्तियां रही हैं ।
(४२)
तथा - यावल्लक्ष प्रमाणो यो, द्वीपो वाऽप्यथवाऽम्बुधिः ।
स्युस्तावत्यः परिरयश्रेण्यस्तत्रेन्दु भास्वताम् ॥४३॥. जितने लाख योजन प्रमाण द्वीप अथवा समुद्र हो उतने गोलाकार में सूर्य चन्द्र की श्रेणियां है । (४३)