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________________ (१८२) केवलं चन्द्र सूर्याणां, यत्प्राक्कथितमन्तरम् । तदेव सांप्रतं चन्द्र प्रज्ञप्त्या दिषु दृश्यते ॥२८॥ मनुष्य क्षेत्र के बाहर सूर्य चन्द्र किस तरह रहते है । वह आगमोक्त बात वर्तमान काल में कहीं प्राप्त नहीं होता है । केवल चन्द्र सूर्य का अन्तर है जो पूर्व में कह गये हैं वही वर्तमान काल में चन्द्र प्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थों में देखने को मिलता है। (२७-२८) तथोक्तं चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्रे जीवाभिगम सूत्रे च - "चंदाओ सूरस्स य सूरा चंदस्स अंतरं होइ । पन्नास सहस्साई जोयणाणं अणूणाई ॥२६॥ सूरस्स य सूरस्स य ससिणो ससिणो य अंतरदिटुं। . बहियाउ माणुस नगस्सजोयणाणं सहयसहस्सं ॥३०॥" चन्द्र प्रज्ञप्ति और जीवाभिगम सूत्र में कहा है कि - 'चन्द्र से सूर्य का और सूर्य से चन्द्र का अन्तर-दूरी सम्पूर्ण रूप में पचास हजार योजन होता है और मानुषोत्तर पर्वत के बाद सूर्य से सूर्य का और चन्द्र से चंन्द्र का अंतर एक लाख योजन का होता है । (२६-३०)' सूरंतरिया चंदा चंदतरिया य दिणयरा दित्ता । चित्तंतरले सागा सुहलेसा मंदलेसा य ॥३१॥ दो सूर्य के बीच में चन्द्र, और दो चन्द्र के बीच में सूर्य ऐसी स्थिति वहां की है और शुभ-सुन्दर और मन्द सौम्य लेश्या वाले वे चन्द्र सूर्य है एवं बीच में चित्र (मिश्र) लेश्या वाले है, अर्थात सूर्य चन्द दोनों का प्रकाश जहां एकत्रित होता है वहां चित्र लेश्या जानना । (३१) ततश्च - एषां संभाव्यते चन्द्र प्रज्ञप्त्याद्यनुसारतः। सूची श्रेण्या स्थिति नैव, श्रेण्या परिरयाख्यययाः ॥३२॥ इससे चन्द्र प्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थों के अनुसार ये चन्द्र सूर्य की सूची श्रेणी समान लाइन नहीं होती परन्तु वलयाकार श्रेणी होती है । (३२) .
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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