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________________ (१८१) तथा तस्मिन्नेवार्थे सूर्य प्रज्ञप्ती संग्रहणी गाथा : - "चोयालं चंद सूर्य चोयालं चेव सूरि याण सयं । पुकरवर वरंमि दीवे चरंति एएपगासंता ॥२२॥" चत्तारि सहस्साई बत्तीसं चेव होंति नक्खता । छच्च सया वावत्तर महागहा बारस सहस्सा ॥२३॥ छन्नउइ सय सहस्सा चोयालीसं भवे सहस्साई । चतारिं च सयाई तारागण कोडि कोडीणं ॥२४॥ इसी ही अर्थ के संदर्भ में सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र में संग्रहणी गाथा है वह इस प्रकार है - एक सौ चवालीस चन्द और एक सौ चवालीस सूर्य पुष्करवर द्वीप को प्रकाशित करते भ्रमण करते है । (२२) समम्र पुष्करवर द्वीप में चार हजार बत्तीस (४०३२) नक्षत्र है, बारह हजार छ: सौ बहत्तर (१२६७२) बड़े ग्रह हैं और छियानवे लाख चवालीस हजार चार सौ (६६४४४००) कोडा कोडी तारा समुदाय है । (२३-२४) । ज्योतिष्करण्डकेऽप्या ::"धायइसंडप्पभिई उहिट्ठा तिगुणिया भवे चंदा । आइल्ल चंद सहिवा. ते हंति अणंतरं परओ ॥२५॥ आइच्चाणंपि भवे एमेव विही अणेण कायव्वा । दीवेसु. समुद्देसु अएमेव परंपरा जाण ॥२६॥" ज्योतिषकरंडक में भी कहा है कि - धातकी खंड से आगे से आगे के द्वीप में चन्द्र सूर्य की संख्या जानने के लिए पीछे के द्वीप अथवा समुद्र के चन्द्र सूर्य की संख्या को तीन गुणा करना चाहिए, जम्बूद्वीप से लेकर उस द्वीप अथवा समुद्र के आगे के सर्व चन्द्र सूर्य उसमें मिलाने से उस-उस द्वीप समुद्र के चन्द्र सूर्य की संख्या निश्चित होती है । यह परम्परा पद्धति सर्वत्र समझना चाहिए । (२५-२६). अनन्तरं नरक्षेत्रात्सूर्य चन्द्राः कथं स्थिताः । तदागमेषु गदितं, सांप्रतं नोपलभ्यते ॥२७॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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