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________________ (१७६) योजनानां सहस्राणि, पन्चाशत्तत्र चादिमम । द्वितीयं तु योजनानां, लक्षं साधिकमन्तरम् ॥६॥ इदमर्थतोजीवाभिगमसूत्रचन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्रादिषु ।' प्रथम जो सूर्य से चन्द्र का और चन्द्र से सूर्य का अन्तर है वह पचास हजार योजन का है और दूसरा सूर्य से सूर्य का अथवा चन्द्र से चन्द्र का जो अन्तर दूरी है वह एक लाख योजन से कुछ अधिक है । (६) इसी बात का भावार्थ जीवाभिगम सूत्र, चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्र आदि में कहा है । साधिकत्वं तु पूर्वोक्तं, चन्द्रार्कान्तरमीलने । तन्मध्यवर्तिसूर्येन्दु बिम्बविष्कम्भ योगतः ॥७॥ सूर्य चन्द्र के अन्तर के माप में पूर्व जो अधिकता कही है उस अन्तर के मध्य में सूर्य चन्द्र के बिम्ब- विमान की चौडाई को मिलाकर समझना, अर्थात् एक सूर्य से दूसरे सूर्य के बीच का अन्तर एक लाख योजन का है, उसके बीच में रहे चन्द्र की चौड़ाई एक लाख योजन से अधिक रूप में गिनना चाहिए । इसी तरह चन्द्र के विमान में भी समझना चाहिए । (७) तथोक्तं 'ससिससि रविरवि साहिय जो अणलकूखेण अंतर होई'. इति शास्त्र में भी कहा है कि - चन्द्र से चन्द्र का और सूर्य से सूर्य का अन्तर दूरी एक लाख योजन से कुछ अधिक है। शशिनाऽन्तरितो भानुर्भानुनाऽन्तरितः शशी । . राकानिशान्तवच्चित्रान्तरास्ते चन्द्रिकातपैः ॥८॥ चन्द्र से अंतरित सूर्य है और सूर्य से अंतरित चन्द्र है अर्थात् एक चन्द्र के बाद सूर्य फिर चन्द्र उसके बाद सूर्य इस तरह रहा है, चन्द्र और सूर्य के ताप से पूर्णिमा की रात्रि में अन्त समय समान विचित्र प्रकार का वह अन्तरा होता है । अर्थात् पुनम की रात्रि के अन्त समय में एक तरफ चन्द्र का अस्त होता है और दूसरी ओर सूर्योदय होता है उस समय में जैसा प्रकाश और ताप आदि होता है, उसी प्रकार का चित्र विचित्र वातावरण वह अन्तरा में होता है । (८)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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