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चौबीसवां सर्ग परस्मिन् पुष्कराद्धेऽथ, मानुषोत्तर शैलतः । परतः स्थिरचन्र्द्रार्क व्यवस्था प्रतिपाद्यते ॥१॥ .
अब मानुषोतर पर्वत के बाद में रहे शेष पुष्करार्ध में स्थित रहे चन्द्र सूर्य की व्यवस्था का प्रतिपादन किया जाता है । (१)
द्वीपार्णवेषु सर्वेषु मानुषोत्तरतः परम । ज्योतिष्काः पन्चधापिस्युः स्थिराश्चन्द्रार्यमादयः ॥२॥
मानुषोत्तर पर्वत के बाद रहे सारे द्वीप और समुद्रों में चन्द्र, सूर्य आदि पांचों प्रकार के ज्योतिषी स्थिर है । (२) .
स्थिरत्वादेव नक्षत्र योगोऽप्येषाम वस्थितः । चन्द्राः सदाऽभिजिद्युक्ताः सूर्याः पुष्य समन्विताः ॥३॥
चन्द्र और सूर्य स्थिर होने से उनका नक्षत्र के साथ का योग सम्बन्ध भी स्थिर ही है, इससे हमेशा सभी चन्द्र अभिजित् नक्षत्र से युक्त होता है और सभी सूर्य पुष्प नक्षत्रों से युक्त होते हैं । (३) . ... तथोक्त जीवाभिगम सूत्रे :
बहियाउँमाणुसनगस्स चन्द्र सूराणऽवट्ठिया जोगा ।
चन्द्रा अभीइजुत्ता सूरा पुण होंति पुस्सेहिं ॥४॥ . श्री जीवाभिगम सूत्र में भी कहा है कि - मानुषोत्तर पर्वत से बाहर रहे सभी चन्द्र और सूर्यों का योग स्थिर है, उसमें चन्द्र अभिजित नक्षत्र से युक्त होता है और सूर्य पुष्प नक्षत्र से सहित होता है । (४)
गिरिकूटा वस्थितानामे तेषामन्तरं द्विधा । तद्रवीन्द्वोरे कमन्यदिन्द्वोस्तथाऽमिथाः ॥५॥
गिरिकूट आदि ऊपर रहे सूर्य चन्द्र आदि का अन्तर दूरी दो प्रकार की है उसमें एक सूर्य से चन्द्र का उपलक्षण से चन्द्र से सूर्य का अन्तर और दूसरा एक सूर्य से दूसरे सूर्य का और एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का अन्तर । ये दो प्रकार का है । (५)