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नागादीनां निकायानां, नवामां भवनेषु ये । जिनालया योजनानां, दीर्घासते पन्चविंशतिम् ॥३१४॥ तानिद्वादशा सार्द्धानि, पृथवोऽष्टदशोच्छ्रिताः।
त्रिधाप्येतदद्धमाना, व्यन्तराणां जिनालयाः ॥३१५॥. - भवन पति के शेष रहे नागकुमार, सुवर्णकुमार आदि नव निकाय के भवनों में जो शाश्वत चैत्य है वे सभी पच्चीस योजन लम्बे, साढ़े बारह योजन चौड़े और अठारह योजन की ऊंचाई वाला है, और व्यन्तरों के निवास स्थान में जो शाश्वत चैत्यों का माप तीनों प्रकार से लम्बाई चौड़ाई, ऊंचाई नव निकाय के चैत्य से आधा-आधा जानना । अर्थात् व्यंतर वास का चैत्य साढे बारह योजन लम्बा, सवा छः योजन चौड़ा और नौ योजन ऊंचा है । (३१४-३१५)
ज्योतिष्कगतचैत्यानां, न मानमुपलभ्यते । प्राय: क्वाप्यागमे तस्माद स्माभिरपि नोदितम् ॥३१६॥
ज्योतिषी देवों के विमान में रहे शाश्वत चैत्यालयों का माप किसी भी आगम में नहीं मिलता है, इसलिए हमने भी नहीं कहा है । उसकी कोई संख्या नहीं है अतः असंख्य कहा गया. है । (३१६)
येऽथ मेरूचूलिका सु, तथैव यमकाद्रिषु ।
कान्चनाद्रिदीर्घवृतवैताढयेषु हृदेषु च ॥३१७॥ . ... . . तथा दिग्गज कूटेषु, जम्ब्वादिषु द्रुमेषु च ।
प्रागुक्तेषु च कुण्डेषु निरूपिता जिनालयाः ॥३१८॥ क्रोशार्द्ध पृथुलाः क्रोशदीर्धाश्चाप तानि च । चत्वारिंशानि ते सर्वे, चतुर्दश समुच्छ्रिताः ॥३१६॥
मेरू पर्वत की चूलीका, यमक पर्वत, सर्व कांचन पर्वत, दीर्घ और वृत्त दोनों प्रकार के वैताढय पर्वत, सारे सरोवर में तथा दिग्गज कूट, जम्बू आदि वृक्ष
और आगे कहा गया सभी कुंड - इन सभी स्थानों में कहे गये जो शाश्वत चैत्यालय है वे सब एक कोस लम्बे आधा कोस चौड़े और चौदह सौ चालीस (१४४०) धनुष्य ऊंचे हैं । (३१७-३१६)