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________________ (१६८) त्रयोदश कोटि शतान्येकोननवतिं तथा । कोटीः षष्टि चलक्षाणि, तत्रार्चानां स्मराम्यहम् ॥ २६८ ॥ पहले इस ग्रन्थ में कह गये है उसी तरह अधोलोक में भवनपति के सात करोड बहत्तर लाख भवन (७७२०००००) है उसमें प्रत्येक में एक-एक चैत्यालय है, इससे अधो लोक में सात करोड बहत्तर लाख शाश्वत चैत्यों की सर्व संख्या कही है और उसमें रहे शाश्वत जिन प्रतिमा की संख्या तेरह सौ नवासी करोड़ और साठ लाख (१३, ८६, ६०,०००००) होता है । उसका मैं बार-बार स्मरण करता हूं। (२६६-२६७) 1 एक-एक चैत्य में एक सौ अस्सी जिन प्रतिमा है इससे ७७२००००० चैत्य को × १८० से गुणा करनें से चैत्य में जिन बिम्ब = १३,८६,६०,००००० सर्वसंख्या आती है । उद्धर्वलोकेऽपि सौधर्मात्प्रभृत्यंनुत्तरावधि । विमान संख्या चतुर शीतिर्लक्षाणि वक्ष्यते ॥ २६६॥ सहस्राः सप्तनवति स्त्रयोविंशतिरेव च । तावन्त्येवात्र चैत्यानि, प्रत्येकमेकयोगतः ॥ ३००॥ ऊर्ध्व लोक में सौधर्म देवलोक से लेकर अनुत्तर विमान तक की सर्व संख्या चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस (८४६७०२३) होती है और उन प्रत्येक में एक-एक शाश्वत जिनालय होने से चैत्य की संख्या भी चौरासी लाख सत्तानवे हजार तेईस (८४६७०२३) होती है । (२६६-३००) एकं कोटिशतं पूर्ण, द्वि पन्चाशच्च कोटयः | लक्षैश्चतुर्नवत्याढया सहस्त्रैरपि संयुताः ॥ ३०१ ॥ चतुश्चत्वारिंशतैव, षष्टयाढयैः सप्तभिः शतैः । अर्चयामो जिनाचार्यानामूद्धर्वलोके सुरार्चिताः ॥ ३०२ ॥ ऊर्ध्व लोक में रहे उक्त शाश्वत चैत्य में देवों द्वारा पूजित शाश्वत जिन प्रतिमा एक अरब बावन करोड़ चौरानवे लाख चवालीस हजार सात सौ साठ (१५२६४४४७६०) है उसकी हम भाव भक्ति पूर्वक पूजा करते हैं । (३०१-३०२)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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