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________________ (१६६) M उक्त स्थान में एक-एक के अन्दर एक सौ अस्सी जिन प्रतिमा होती है परन्तु नौग्रैवेयक में ३१८ और पांच अनुत्तर में पांच चैत्य होते है और उसमें एक सौ बीस जिन प्रतिमा होती है । जम्बू द्वीप में -६३५ शाश्वत चैत्य धात की खण्ड में १२७२ पुष्करार्ध में १२७२ मानुषोत्तर पर्वत सहित मनुष्यक्षेक बाहर- ८० कुल ३२५६ ... ऊर्ध्व लोक में शाश्वत चैत्य का कोष्ठक नाम . स्थान विमान चैत्य १- सौधर्म देवलोक ३२ लाख ३२ लाख इर्शान " २८ लाख २८ लाख ३- . सनत्कुमार " १२ लाख १२ लाख ४सनत्कुमार " ८ लाख ५- . महेन्द्र ": ४ लाख • ४ लाख ६- लांतक " ५० हजार ५० हजार ७- महाशुक्र देवलोक ४० हजार ८- सहस्रार ".. ... ६+१०- आनत-प्राणत " ...| ११+१२ आरण-अच्यूत " ३०० नौ ग्रैवेयक पांच अनुत्तर ८४६७०२३ ८४६७०२३ ८ लाख * ४० हजार ६ हजार ६ हजार ४०० ४०० ३०० ३१८ ३१०
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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