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________________ (१६७) भी चार जिनालय है । इस तरह ४+६८+४+४=८० अस्सी शाश्वत जिनालय मनुष्य लोक (क्षेत्र से बाहर है । और उसमें शाश्वत जिन प्रतिमाओं की संख्या नौ हजार आठ सौ चालीस (६८४०) होती है । (२६१-२६२) वह इस प्रकार :___नंदीश्वर द्वीप के बावन, कुंडल के चार रूचक के चार, इन साठ चैत्य में एक-एक के अन्दर एक सौ चौबीस जिन प्रतिमा होती है अतः इन साठ जिन गृह में जिन मूर्तियों की संख्या सात हजार चार सौ चालीस (१२४४६०-७४४०) होती है और शेष नंदीश्वर के जो सोलह चैत्य है और मानुषोत्तर पर्वत के चार चैत्य इस तरह बीस चैत्य में एक-एक के अन्दर एक सौ बीस (१२०) जिनबिम्ब होते हैं, अतः सर्व मिलाकर (१२०x२०=२४००) दो हजार चार सौ जिन प्रतिमा होती हैं। इस प्रकार से अढाई द्वीप के बाहर नौ हजार आठ सौ चालीस (७४४०+२४००-६८४०) जिन बिम्ब होते हैं। सहस्राण्येकनवतिं, लक्षास्तिस्रः शतत्रयम् । विंशमत्र जिनार्चानां, तिर्यग्लोके नमाम्यहम् ॥२६४॥ तिर्छा लोक के अन्दर शाश्वत जिन प्रतिमा की सर्व संख्या तीन लाख इकानवे हजार तीन सौ बीस (३६१३२०) होती है । इन सब जिन प्रतिमाओं को मैं नमस्कार करता हूं । (२६४) . ज्योतिष्काणां व्यन्तराणामसंख्येयेष्वसंख्यशः । विमानेषु नगरेषु, चैत्यान्यर्चाश्च संस्तुवे ॥२६५॥ इसी तरह ही इस ति लोक में ज्योतिषी के असंख्यात विमान है । और व्यन्तरों के असंख्यात नगर है उसमें रहे असंख्यात् शाश्वत जिनालय और असंख्य शाश्वत जिन प्रतिमा है उनकी मैं स्तुति करता हूं । (२६५) अधोलोकेऽपि भवनाधीशानां सप्तकोटायः । लक्षा द्विसप्ततिश्चोक्ता भवनानां पुराऽत्र याः ॥२६६॥ प्रत्येकं चैत्यमेकैकं, तत्रेति सप्त कोटयः । लक्षा द्वि सप्ततिश्चाद्योलोके चैत्यानि संख्यया ॥२६७॥
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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