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की होती है । उन शाश्वत प्रतिमाओं को हम नमस्कार करते हैं । अब दस कुरुक्षेत्र के अन्दर भी एक एक जिनालय है और उसमें शाश्वत प्रतिमाएं बारह सौ (१२०×१० = १२०० ) है । (२७७-२७८)
जम्बू प्रभृतयो येऽत्र, महावृक्षा दशोदिता: । शतं सप्तदशं तेषु, प्रत्येकं स्युर्जिनालयाः ॥२७६॥ एकस्तत्र मुख्य वृक्षे, शतमष्टाधिकं पुनः । अष्टाधिके वृक्षशते, तत्परिक्षेपवर्तिनि ॥ २८० ॥ तद्दिग्विदिग्वर्ति कूटेष्वेकैक इति मीलिताः । एकादशशती सप्तत्याढया वृक्ष जिनालयाः ॥ २८१ ॥
जम्बू आदि जो दस वृक्ष कहे हैं उन प्रत्येक को एक सौ सत्तर जिनालय है, वह इस तरह मुख्य वृक्ष के ऊपर एक जिनालय है । उस मुख्य वृक्ष की चारों तरफ में एक सौ आठ वृक्ष हैं, उन प्रत्येक पर एक-एक जिनालय है, इसमें एक सौ आठ जिनालय है और मुख्य वृक्ष के चार दिशा में और चार विदिशा में रहे आठ कूट पर प्रत्येक पर जिनालय है । इस तरह सर्व मिलाकर एक सौ सत्तर (१+१०८+८=११७) जिनालय होते है । ये सब वृक्ष के ऊपर के जिनालयों की संख्या एक हजार एक सौ सत्तर (११७ × १० = ११७०) की होती है। (२७६-२८१)
लक्षमेकं सहस्राणि चत्वारिंशदथोपरि ।
चतुः शतीं जिनार्चानां, वृक्षेषु दशसु स्तुवे ॥ २८२ ॥
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इन दश वृक्षों पर एक लाख चालीस हजार चार सौ (११७०×१२=१४०४००) शाश्वत प्रतिमाओं को मैं स्तवन करता हूं । (२८२)
चतुःशतीह कुण्डानां, या पन्चाशा निरूपिता । तत्र प्रासाद एकैकः, प्रतिमास्तत्र चार्हताम् ॥ २८३ ॥ चतुष्पन्चाशत्सहस्रमिता नमस्करोम्यहम् । प्राक्तनैस्त्वत्र कुण्डानां, साशीतिस्त्रिशतीरिता ॥२८४॥
पृथग्महानदिचै त्यसप्ततिश्च मया पुनः । महानदीष्वपि कुण्डेष्वेव प्रासाद संभवः ॥ २८५ ॥