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________________ (१६२) नंदीश्वरे द्विपन्चाशत्कुण्डले रूचकेऽपि च । चत्वारि चत्वारि षष्टरित्येवं सर्व संख्यया ॥२६७॥ . चतुराणि चैत्यानि, शेषाणि तु जगत्त्रये । त्रिद्वाराण्येव चैत्यानि, विज्ञेयान्यखिलान्यपि ॥२६८॥ युग्मं ।।। नंदीश्वर द्वीप में बावन चैत्य है, कुण्डल द्वीप में चार चैत्य है और रूचक द्वीप में चार चैत्य है, इस तरह सर्व मिलाकर (५२+४+४=६०) साठ चैत्य होते हैं। ये ६० चैत्य चार द्वार वाले हैं । शेष समग्र विश्व में जितने शाश्वत चैत्य है वे सभी ही तीन द्वार वाले हैं । (२६७-२६८) ज्योतिष्क भवनाधीशव्यन्तरावसथेषु च । .... सभार्चाभिस्सहैषु स्यात्साशीति प्रतिमाशतम् ॥२६६ ॥ तच्चैवं- उपपाताभिषे काख्ये, अलङ्कारसभापि च । व्यवसाय सुधर्माख्ये; भान्ति पन्चाप्यूमः सभाः ॥२७॥ द्वारै स्त्रिभि स्त्रिभि द्वारे, द्वारेऽर्चाभिश्चतुसृभिः । भाति स्तूपः प्रतिसभं द्वादश द्वादशेति ताः ॥२७॥ षष्टिः पन्चानां समानामिति प्रति सुरालयम् । प्राग्वद्विंश शतं चैत्ये, इत्यशीति युतं शंतम् ॥२७२।। ज्योतिषी के भवनपति के और व्यंतरों के आवास में सभा मंडप में रही शाश्वत प्रतिमा गिनते कुल एक सौ अस्सी (१८०) शाश्वत प्रतिमा होती है । वह इस प्रकार :- यहां देवों की पांच सभा होती है । १-उत्पात सभा, २- अभिषेक सभा, ३- अलंकार सभा, ४- व्यवसाय सभा और ५- सुधर्मासभा । इन पांचों सभाओं के तीन-तीन द्वार होते हैं । और उन प्रत्येक द्वार पर चार-चार प्रतिमाओं से युक्त एक-एक स्तूप होता है । इससे एक-एक सभा में बारह-बारह जिन मूर्तियां होती है । प्रत्येक देवलोक में पांच सभा की मिलाकर साठ (१२४५-६०) शाश्वत प्रतिमा होती है और पहले के समान प्रत्येक चैत्य की एक सौ बीस प्रतिमाएं होती है । इसी तरह उक्त तीनों निकाय देवों के निवास स्थान में एक सौ अस्सी (१२०+६०=१८०) शाश्वती जिनेश्वर भगवान की मूर्तियां होती है । (२६६-२७२)
SR No.002273
Book TitleLokprakash Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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